एक दफ्तर के सामने भीड़ थी,
बेरोज़गारों की-उम्मीदवारों की.
मेरे पास भी आया था
इंटरव्यू देने के लिए लैटर,
उस लैटर वाले लिफाफे में था एक और पेपर,
उसी पर लिखा था-
"दो लाख लाइए, नौकरी पाइये!"
दो लाख कहाँ से लाते?
हम तो चले आए थे किस्मत आज़माने.......
तभी--
चपरासी ने नाम लेकर पुकारा था,
घबराहट से चेहरा उतरा हमारा था.
अपने को संयत कर कमरे में पहुंचे,
सामने ही कुर्सी पर थे
एग्जामिनर महोदय बैठे.
आव देखा ना ताव
प्रश्नों की बौछार थी थोक भाव!
कद्दू में कितने बीज होते हैं?
तोते कितने घंटे सोते हैं?
मैंने कहा--
"सर जिनका इस नौकरी से कोई सम्बन्ध नही,
वो भी कोई क्वेश्चन हैं?!"
वो बोले--
"हाँ! यही तो क्वेश्चन हैं.
क्योंकि मंत्री जी के भतीजे का सेलेक्शन है!"
मैं झल्लाई! "तो दो लाख क्यों मांगे थे?"
वो थोड़ा मुस्कुराये,
अपना मुंह मेरी तरफ़ उठाए
धीरे से बोले,
"तो क्या आप लाई हैं?
मैंने तो कबसे झोली फैलाई है!"
फ़िर समझाने के अंदाज़ में बोले--
"देखिये,आज कल झूठ का ज़माना है,
मंत्री जी और उनका भतीजा तो एक बहाना है!"
3 comments:
Jahan Hak na chale vahan loot sahi, Jahan Sak na chale vaha bhookh sahi.
Sundar chitran, Thanks.
बहुत ही बढ़िया ! keep it up !!
waah...aapki kalam kaa vyangyatmak roop kaaai accha laga di...kavita kaa tukantak hona ise aur bhi manohar banata hai...
with regards
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