Tuesday, November 11, 2008

साथ तन्हाई के शामें मेरी गुज़रती हैं..........

मेरे हंसने का सबब ना पूछो लोगों
सिसकियाँ यूं ही मेरी निकलती हैं ,

दिल को ज़ख्मों से भर दिया तुमने
फिर भी यादें उसी में पलती हैं ,

हांथों में हाथ लिए हम चले जिन राहों पर
सर्द आहें वहां ठंडी हवा सी चलती हैं ,

किताब-ए-ज़िन्दगी में तू जहां तक शामिल था
मेरी उंगलियाँ पन्ने वही पलटती हैं ,

सर्द सहरों की नम शबनम-सी यादें
रह-रह के आज भी सुलगती हैं ,

उम्र तन्हा कटेगी कैसे ,नहीं सोचा है
साथ तन्हाई के शामें मेरी गुज़रती हैं ............

2 comments:

VIJAY VERMA said...

Yeh raat itni tanha kyun hoti hai,
kismat se apni sabko sikayat kyun hoti hai,
Ajeeb khel khelti hai yeh kismat
Jise hum pah nahi sakte.........

anubhooti said...

jeevan ke dhanatmak pahaloo par bhi kuchh likhen

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