Sunday, December 7, 2008

पिता की स्मृति में......



व्यथित ह्रदय चाहता
किसी से बात करुँ
अन्तर की गांठें खोल
भाव उन्मुक्त करुँ
उच्श्रंखल हो नयन मेरे
छलके पड़ते हैं
उच्छवासों पर नहीं नियंत्रण मेरा
है अदीप्त पथ ,
भटक गई हूँ ,
लक्ष्य कहाँ है ?
वह सुगंध -मय ज्योति-पुंज ,
जो शोंणित बनके
मेरी रग-रग में निहित
जो जीवन बनके
उसका वह साकार विलग हुआ क्यों मुझसे
अब -------
स्मृतियाँ हैं शेष और अवशेष बहुत से
उनके दिव्य वचन मैं कैसे अब सुन पाऊँ ?
वह वात्सल्य भरा स्पर्श कहाँ मैं पाऊँ ?
प्रश्न बहुत हैं -----
मन उद्वेलित हो हो जाता
उत्तर भी कोई ,
मुझको संतुष्टि नहीं दे पाता
...................*******.........................

यह रचना मेरे पिता श्री श्री कृष्ण मिश्र को उनकी १८ वीं पुण्य तिथि दिसम्बर पर मेरी भाव भीनी श्रद्धांजलि है .

7 comments:

रश्मि प्रभा... said...

पापा.........हर जगह , हर घडी साथ हैं,
मौन चेहरा क्या आज भी सीख नहीं देता?
क्या आज भी नहीं सराहते?
वे हैं............सरधा के फूल चढाएं , आओ

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

अच्छी रचना है ।

36solutions said...

नमन, हमारी भी श्रद्धासुमन समर्पित उस महामना को ।


बहुत सुन्‍दर शव्‍दों और भावों से परिपूर्ण रचना के लिये आपका आभार ।

हिन्दीवाणी said...

उस मनीषी को मेरी ओर से श्रद्धा के फूल समर्पित हैं।

Unknown said...

ati sundar rachna hai.
is rachna ko padhne ke baad mujhe isme kaafi kuchh jana pehchaanaa sa laga.
badhai sweekarein
shashank

Unknown said...

शायद सच ही कहते हैं,बिटिया पिता के ज्यादा करीब होती है ,और हाँ वो पास रहें या दूर लगता है हमें हर पल अपनी निगहबानी में रखे हुए हैं ,इससे जिंदगी के कठोर पल और निर्णय लेने से जुड़े ऊहापोह दोनों ख़त्म हो जाते है |बेहद सुन्दर रचना है,आपके पिता को मेरी श्रद्धांजलि |
शायद आपको पहले कहीं पढ़ा है |एक अनुरोध रहेगा कठिन शब्दों के प्रयोग से संभव हो तो बचें ,आपकी रचना सबकी रचना होनी चाहिए |सरल शब्दों का प्रयोग आपकी खुद की सरलता में निहित है |
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विजय तिवारी " किसलय " said...

ज्योत्स्ना जी
अभिवंदन
मेरी भी पूज्य पिता जी को आदरांजली

मैंने भी अपने पापा को लिखा था -

आज अगर तुम होते पापा,
अपने गले लगा लेते.
हाथों के स्पर्श तुम्हारे,
तन-मन नेह जगा देते .
सब हैं फिर भी कमी तुम्हारी,
मन उदास कर जाती है.
खुशियों के हर क्षण में "पापा",
याद तुम्हारी आती है ...

सच है अपनों, ख़ास कर मां- पिताजी
के साथ गुजारे पल अमूल्य निधि से कम नही होते .

आपका
विजय

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