"भ्रम"
तुम कहते हो,
वो सुनती है.
जानती है
तुम एक भ्रम में हो.
जो सत्य जैसा
दिखने का प्रयास करता है
"भ्रम" सच है.
ये सिद्ध करने के लिए
प्रयास तुम्हारा संबल
बन जाता है.
परन्तु सत्य तो
निर्मल है, शाश्वत है.
उसे कितना भी बदलना चाहो,
नही बदलेगा.
फ़िर भी "भ्रम" का सौन्दर्य खींचता है.
तुम कहते हो वह "प्रेम" है.
पर क्या प्रेम यह बताता है कभी?
कब किसको बाँधा उसने?
नहीं ना!!!
प्रेम का दिव्य आकर्षण
कब किसे खींच ले,
यह स्वयं खिंचने वाला भी नहीं जानता!
जीता है सतत "भ्रम" में
ये कहते हुए----
हमीं सो जायेंगे कहते-कहते,
देखना है फ़िर किसको सुनोगी कितना?
नोट-अन्तिम दो पंक्तियाँ किसी और की हैं, उन्हें धन्यवाद!
21 comments:
wah...kya baat hai...jyotasna tum hrday se bhaav aur bhaawanao se aut prot ho...vakai ....
वाह!! बहुत उम्दा. सही है.
भाव्नाओं से भरी हुई कविता। हमारा नाम आ गया इसमें इसलिये और सुन्दर। :)
बहुत अच्छी कविता। वधाई
bhavnaaon se paripoorna rachna hai, aakhri ki do pantiyaan jis kisi ki bhi hain use shubhkaamnayein ki us vyakti ki panktiyaan aapki rachna mein sthaan payi, bhale hi aakhri mein!
परन्तु सत्य तो
निर्मल है, शाश्वत है.
उसे कितना भी बदलना चाहो,
नही बदलेगा.
फ़िर भी "भ्रम" का सौन्दर्य खींचता है.
तुम कहते हो वह "प्रेम" है.
achhi rachana lagi . bahut bahut dhanyawad.
भ्रम और सत्य - इन दोनों पहलुओं को आकर्षक शब्दों में बाँधा है, भ्रम का सौंदर्य और प्रेम का सत्य......मुझे बांधता चला गया है.....
भ्रम से संदर्भित अभिव्यक्ति में यथार्थता भी है अनुभव का आभास भी,
बधाई ज्योत्स्ना .
अति सुंदर पंक्तियाँ >>
परन्तु सत्य तो
निर्मल है, शाश्वत है.
उसे कितना भी बदलना चाहो,
नही बदलेगा.
- विजय
jyotsna ji..jo prem ka sahi arth na samjhe uske liye wo bhram bankar rah jata hai... waastav mein prem hi duniya ki sabse sundar aur shashwat satya hai.. prem deh se karenge to nashvar hoga, aatma se karenge to parmaatma se milan hoga.. meri samajh mein yahi satya hai..
bahut sunadr....
बहत गंभीर भावों को प्रस्तुत करती आपकी यह आध्यात्मिक रचना बेजोड़ है आपकी लेखनी और आपका चिंतन प्रणम्य है
भ्रम और प्रेम ....भ्रम कड़वा सत्य है और प्रेम तो मीठा सत्य... जो प्रेम को समझे वोह सत्य और ना समझे उसके लिए सबकुछ भ्रम ही भ्रम ...
बहोत खूब दोस्त जी...
बहुत अच्छी रचना!
bahut achchhi kavita hai.
aap ne bahut sundar kavita likhi hai
बाप रे ये क्या कह दिया आपने................मैं तो विमुग्ध हो गया.....निर्वाक भी......चकित भी............अवाक भी...........अद्भुत.......गहरी..........प्रेमपूर्ण.........मगर आध्यात्मिक.........सुंदर........बहुत ही..........अब क्या तो कहूँ.........!!??
jee .bahut shaaandaar kavita hai....
meri alp buddhi iss rachnaa ko do teen baar padhne k baad hi samajh saki... rachnaa bahut hi sunder hai aur baatein sacchi.... aapne bhram aur prem k vishay mein apni baat jis prakaar rakhi hai vo prashansaneeya hai.... direct hote hue bhi vo sateek nahin hai... shuru ki do lines aur ant ki do lines use indirect banati hain. par muhe lata hai ki mool vishay se bhramit karti hain ye panktiyaan, bajay use sashakt karne k. aisa mera apnaa vichaar hai di...
wid regards
vartika
bhram ki sargarbhit abhivakti hai aapki kavita..... par shyad bhram bhi zaroori ho jata hai kabhi - kabhi jeene ke liye.
भ्रम सत्य कभी नहीं हो सकता ,सत्य जैसा भी नहीं हो सकता ,जो सत्य है सत्य है ,जो भ्रम है भ्रम है ,हाँ भ्रम खुबसूरत जरुर हो सकता है ,भ्रम प्रेम हो सकता है |हमारे पास भ्रम हमेशा से अधिक होता है सत्य कम ,भ्रम ही बांधता भी है |सत्य से तो हम पलायन करते हैं ,अब कोई कहते,कहते सो जाये तो क्या कहोगे ?
बेहद खुबसूरत कविता ,ज्योत्स्ना कविता को जीती है ,सिर्फ लिखती नहीं,यही उसकी पहचान है ,यही उसकी जिंदगी यही उसका डाल -भात और रसोई |
Post a Comment