"हे प्रभु!
मन मर गया है, मस्तिष्क शिथिल हो गया है, ह्रदय जल रहा है, फ़िर क्या बचा इस शरीर में? अब विचारों का आना भी नही होता कि उनसे पूछ सकूँ".
दुखी होकर नारी ने प्रभु से यह प्रश्न किया.
"किसी पुरूष को सुख देने के लिए, इतना ही काफ़ी है -- यदि तुम्हारे मृतक समान जीवित शरीर के उपभोग से तुम्हारा थका हारा आगत पति जो तुम्हारे व तुम्हारी संतानों हेतु सुबह से धन उपार्जन के लिए घर से बाहर गया था, और अधिक थक जाए, मरे हुए मन, विचारहीन मस्तिष्क और जलते हुए ह्रदय कि सडांध उसकी नासिका तक पहुँचने से पहले ही वह थककर सो जाए, तो हे नारी! इससे अधिक सुंदर क्या उपयोग हो सकता है तुम्हारे इस नश्वर शरीर का?"
प्रभु का यह उत्तर था.
नारी सोचने को विवश हो गयी. प्रश्न भी किया तो किससे, एक पुरूष से?
पुरूष प्रधान समाज में यही है नारी कि विडम्बना. हम कितना भी कह लें कि आज स्त्रियाँ पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर चल रही हैं, पर सत्य तो कुछ और ही है, जो हम भी जानते हैं और आप भी!
Wednesday, February 4, 2009
विडम्बना
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
23 comments:
ठीक कहा आपने। हम सहमत हैं आपके विचारों से। ब्लॉगिंग में स्वागत है। आइयेगा कभी चौखट पर आपका स्वागत है।
नारी के नश्वर अस्तित्व को कितने अर्थपूर्ण माध्यम से लिखा है . समाज की रचना ही हुई पुरुषों के द्बारा,तो वक़्त कितना भी आगे आए ,ये प्रधानता बनी रहेगी......कृपा रही प्रभु (पुरुष) की इतनी कि स्त्री की कोमल काया में शक्तिशाली मन दिया.........यही काफी है.
बहुत ही कम शब्दों में बड़ी बात कह दी,जो सोचने को ववश करती है,बस मात्र सोचने को........
yeh sirf kaha jata hai ki naari-purush ek samaan., hakiqat ekdum viprit hi hai, jo aap aur hum bakhubi jaante hi hai. Ha kai shetra main naari purush se aage hai..per....
yeh per hamesha per hi rahenga... !!!
Bahot uchi soch hai yeh...
गजब का लेखन। बधाई।
यथार्थ।
Jyotsna Ji !Nar aur nari es sristi key abhina aang hae ! Dono key paas mann bhi hey, buddhi bhi hey! Aapne sarir anusar dono hi JEEVAN jeetey hein aur prakirti key niyam-anusaar dono hi aapas mey 'COMPATIBILITY' chahate hein. Iss tarha ki compatibilty mei koi vighan nahi aati agar purush aapne 'ahem' ki aad mey nari ko dukho mey na dalta.
Vidammana yeh hey ! nar aur nari dono ki soch key aapne aapne dayre hein, dono ahem ko aapne 'bhitar' jee rahe hein ,.....,kisi ek ko upper honna tha,.....
Kair jyotsna ji ! Aaj bhi vo nar-nari juo aapne 'ahem' sey uth ek dusare ki izzat karte hein, vo alag alag sooch key dayre nahi rakhte bas DONNO sooch key dayro ko ek kar lete hey, aur khushhal jindagi jeete hein. Anyatha mei ...kiya samaj mei ho raha hey yeh kisi sey chuppa nahi hey ji.
bahut achcha likha he mam...
par umeed karta hu ki yah sirf ek khyaal ho ...kyonki jis din insaan ko log ...naari purush ....dharm ..aadi ke naam par baatna chod denge ... us din hi insaan sirf insaan rah jayega .. doosra iski suruwaat kare na kare hum khud kar sakte he ... aur apani duniya hum khud hi banate he ....... chaho to isme insaan ki jagah ho .... na chaho to kai tukde me bati insaniyat rakh lo ..
आपने बहुत गहरे में जाकर यह बात लिखी है लेकिन मैं इससे पूर्ण सहमत नहीं हूँ क्योंकि थका हारा पति है तो पति की थकान दूर करने में पत्नी भी आनंदित होती है लेकिन आपने लिखा सुंदर है
bahutt he achaa likha hei
पुरुष हमेशा प्रेम भी करेगा तो दिमाग से..और नारी सब दिल से करती है..इसीलिए तो ये पुरुष उनके नाजुक से दिल की भावनाओ का फ़ायदा उठता है...और नारी कितनी बी आगे बढ़ जाये उसकी भावनाओ में कोई फरक नहीं आने वाला..और पुरुष नारी का हमेशा से उपयोग करता आया है और करता रहेगा....
http://neeta-myown.blogspot.com/
ये क्या कह रही हैं आप ?स्त्री और पुरूष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ,जहाँ नही हैं ,वहीँ द्वंद है ,वहीँ मन मरता है,मस्तिष्क शिथिल होता है,ह्रदय जलता है |प्रभु भी कभी क्या ऐसा कहता जैसा आपने कहा?शायद नही |स्त्री को पहले स्त्री का सम्मान करना सीखना होगा ,उसकी मनस्थिति को समझना होगा |स्त्री-पुरूष का सम्बन्ध ,जीवन उत्पत्ति का माध्यम है ,अगर ये व्यक्तिगत सहमति और मानसिक समन्वय के बिना है तो ये अपराध बन जाता है |हाँ ,आप संस्थाओं और परम्पराओं की बात कहती तो वे स्वीकार्य होती,क्यूंकि जहाँ कहीं भी पुरूष का तथाकथित पुरुषत्व दिखाई देता है ,वहां उसे मालूम होता है कि परम्पराओं और रुढियों को स्त्री कभी नही तोडेगी,स्त्री की आस्तिकता का बढ़ा हुआ पैमाना इसका उदाहरण है ,अगर हो सके तो इससे बाहर निकलने की जुगत लगाइए |,क्षमा के साथ आवेश
Main to yahi janta hoon ki bhagwan krishna ko 16000 premika thi. Ab naari ko samajhna hai ki kaise naari shashakttikaran ho.........
एक गहरी टीस है महिलाओं के हृदय की. इस परम्परा को जीवित रखने में हमारी भारतीय संस्कृति जिसमें पुरूष की प्रधानता को सदैव सर्वोपरि माना गया है, वे जिम्मेदार तो हैं ही .महिलाओं में स्वावलंबन और जाग्रति की कमी भी इन सारी बातों के लिए जिम्मेदार हैं . और जब तक महिलायें सार्थक भाव (द्वेष भाव से नहीं )से आगे नही बढेंगी तब तक नारी को ऐसे ही समझौता करते रहना होगा, क्योंकि प्रकृति ने भी उन्हें पुरुषों की दिनचर्या - सा अनुकूल नही बनाया है, वह ३६५ दिन पुरुषों के समान व्यवहार करने में असमर्थ है, हम आज के युग में भले ही कितनी दलील और प्रयोग दिखा लें लेकिन यथार्थ को झुठलाया नही जा सकेगा .आज आवश्यकता है पुरुषों को आत्म अवलोकन करने का, और महिलाओं को नजरिया बदलने का '
- विजय
bahut sashakt rachnaa hai ye di... satya ko shabd de diye hain aapne.... bas yahi kahoongi ki aap is rachnaa ko "purush pradhaan samaj ki yahi vidambana hai" tak hi rakhiye...hard hitting aapki rachnaa hi hai...vo hi sab keh deti hai..aakhiri statement jo aapkaa apna vichaar saa lagta ahi so logon ki bhavnaon ko thess pahunchaa raha hai..aainaa to dikha diyaa naa aapne... ab jihva se kehne kaa kya mol.. log khud hi dekh lenge apnaa aks usmein.....
itne sanvedansheel vishay k saath nyaya karne k liye aapko hardkik badhai...
Pata nahin kya boloon. bas itna boloonga ki aajkal aisa nahin hai, ya kah sakte hain ki thoda kam hai..
Gyan ji ne bhi ek bahut chota sa udaharan diya hai, lekin sateek hai aur achha hai..padhen
http://halchal.gyandutt.com/2009/02/blog-post_09.html
जब नारी गलत पुरुष (और गलत भगवान) से टकराती है तो उसकी आह निकलती है और जब पुरुष गलत नारी से टकराता है तो उसकी भी आह निकलती है। अभिप्राय यह कि गलत बात, गलत लोग हर एक को कष्ट देते हैं । जो समझदार हैं वह तोहमतें नहीं लगाते कर्म करते हैं। स्वंय का आचरण उच्च रखा जाए तो न पुरुष गलत है, न नारी और न ही मम प्रिय भगवान।
कम शब्दों में बड़ी बात. सहमत हैं.बधाई
अच्छी भावाभिव्यक्ति है ज्योत्सना जी।
लिखते रहिये।
ईश्वर को पुरुष अथवा नारी के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता .स्त्री पुरुष के बिना अपूर्ण है तो पुरुष स्त्री के बिना , जहाँ आपसी समन्वय की कमी होती है ,वहां विवाद ,विद्वेष,विरक्ति,विभेद व विषाद का आधिक्य होता है .
प्रकृति ने हमें केवल प्रेम के लिए यहाँ भेजा है. इसे किसी दायरे में नहीं बाधा जा सकता है. बस इसे सही तरीके से परिभाषित करने की आवश्यकता है. ***वैलेंटाइन डे की आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ***
-----------------------------------
'युवा' ब्लॉग पर आपकी अनुपम अभिव्यक्तियों का स्वागत है !!!
kya kahu....
purush hu isliye nishbd hu.
sach kahu to bhi lagega sirf naari man ko santvana dena chah raha hu..
kintu sach kahu to mera shish
naari ke kadmo me sirf aor sirf jhuka hota he, isliye nahi ki naari mahan hoti he balki isliye ki naari meri maa, bahan, patni, beti, aour sabse badi baat meri PAALAK hoti he.
... प्रसंशनीय व प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।
Post a Comment