तुम----
सैकत-कणों पर
कोई हस्ताक्षर नहीं
जो वायु-वेग से उड़ जाओगे
या कि----
समुद्र की उठती उर्मियाँ,
तुम्हें मिटा देंगी----
हथौड़ी-सी चोट करते
तुम्हारे शब्द----
और छेनी की तरह बेधते
तुम्हारे व्यंग्य----
प्रस्तर पर शनैः - शनैः
तुम्हारा नाम लिखते रहे
बहुत बार सोचती हूँ
मिटा दूं,
धोती हूँ, अश्रु-जल से,
आर्द्र-प्रस्तर तुम्हारे नाम को
और अधिक स्पष्ट कर देता है,
अब तक जिनसे छिपा तुम्हारा नाम
ह्रदय में अंकित था,
वे भी पढ़ लेते हैं,
तुम सत्य कहते हो----
मैं हूँ "पाषाण हृदया!"
26 comments:
इतने गहन भाव कहाँ से लाती हो...
सूक्ष्म दृष्टि पाषाण हृदया के पास नहीं होते,
बहुत ही अच्छी रचना.......
बहुत सुन्दर रचना है।सुन्दर अभिव्यक्ति है।बधाई।
कितनी वेदना है आपके शब्दों में,इस छोटी सी रचना के एक एक शब्द में अन्दर के भाव उमड़ कर बाहर आ गए हैं. चिंतन की पराकाष्टा कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं है.
- विजय
बहुत सुन्दर..
गहरी है संवेदना हृदय कहाँ पाषाण।
सहज शब्द में बात है रचना भाव प्रधान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सही है, एक नारी विषम परिस्थितयों में भी अपने कर्तव्यों, संस्कारो के प्रति ईमानदार होती है और वो वाकई कई मामलो में पाषण हृदया होती है | लेकिन उनका ये पाषण हृदया होना ही एक नर की तुलना में उनको श्रेष्ट बनता है | बहुत अच्छी कविता |
अत्यंत गंभीर भावः सूक्ष्म शब्द चयन सुन्दर प्रवाह कुल मिलाकर लाज़बाब
bahut sunder likha jyotsana !! bhav bahut sashakt hain .........
भाव विभोर कर देने वाली कविता
सुंदर कविता..........बेहद भावपूर्ण................पाषाण हृदया!!
हा ... सही कहा आपने दोस्त जी,
आप् हो "पाषण हृदया" ... पत्थर सी मजबूत और ह्रदय सी कोमल ...!
बहूत गहरे एहसास है यह.... बधाई स्वीकारे.....!
गहन भाव अतिसुन्दर अभिव्यक्ति..........वाह !!! भाव ह्रदय पर अंकित हो गए....मुग्ध हो गयी...क्या कहूँ........बहुत बहुत सुन्दर रचना..
इस कविता को पढने के बाद मैं कुछ देर अकेले और चुप रहना चाहता हूँ
रख कर अपना नाम पाषाण हृदया, फिर भी हो तुम इतनी कोमल ?
जब अनुभूत किया इन भावों को ,बह उठी अश्रु धारा निर्मल.
'पाषाण हृदया' की इस अनूठी परिभाषा के लिए साधुवाद.
"आर्द प्रस्तर तुम्हारे नाम को
और भी स्पस्ट कर देता है "
बहतु खूब दी... d entire conceptualization nd d way u have conncted d elemnts chosen to to be put fwd, is just brilliant... :) अरु प्रीती दी ने जो कहा है आपकी पंक्तियों को जुस्तिफ्य करते हुए, वो वो खूब कहा है.... :)
keep sharing di... आपसे हमें हमेशा ही प्रेरणा मिलती है :)
सुन्दर अभिव्यक्ति है । बधाई
बहुत ही सुन्दर भावना, अच्छा लिखा है आपने .........
गहरे भाव....स्नेह की पराकाष्ठा झलकती है आपकी कविता से.
अपने नाम को सार्थक करने की ऐसी तीव्र ललक जिसके परिचय में ही झलकती हो ,अपने जीवन को सार्थक करने की उसमे कैसी जिजीविषा होगी ?
ब्लॉग पर आते ही पूर्णिमाके चाँद का भव्य दर्शन ;फ़िर उर्दू के शहर में उत्कृष्ट हिन्दी से भेंट ,
वiह आज तो आनंद हो गया
'पाषणहृदय' का एक एक शब्द कहन और चयन अद्भुत है । 'नारी बनाम ब्र्कछ 'के आरम्भिक चार वन्द तक कविता अद्भुत है । शशांक को तो विरासत में ही समृद्ध परम्परा मिली है । सारा आकाश उसी का है ।
मन झांक जरा : गीत की आत्मावलोकन छमताही शायद आपकी शब्द सामर्थ्थ्य का स्रोत है ।
बधाई
ज्योत्सना जी, आपकी कविता और लेखन में गहराई है, आपकी रचना की हर पंक्तियां बरबस कुछ कह रही हैं, एक बार पढने के बाद भी जी नहीं भरता क्या करूं, इसे चिंतन की पराकाष्ठा कहूं तो गलत नहीं होगा---।
सुनील पाण्डेय
09953090154
संवेदना गहरी है ,अभिव्यक्ति सुन्दर ,बधाई।
awesome writes, direct from heart..!
keep writing..:)
jab yahi pashan samudra ke lahro se ghista hai to saikat par bikhra ret ban jata hai .....apki is kavita me khud ko pakar mai bahut khush hu ... bahut achhi kabita hai
bahoot hi deep thoght..ek achhi rachna daad haazir Jyotsana ji..
Harash Mahajan
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