भाव को संजोए वह
शब्द से लिपट गयी
कहीं छन्द सी खनकती
प्रकृति के निकट गयी
कभी शरमाई
मन घूँघट से ताकती
कभी सबकी
पीड़ा के अंतर में झाँकती
कभी सकुचाई
सम-सामयिक को बांचती
चिंतन के चितवन से
देखती समाज को
तोड़ छन्द - बँध
काव्य रीति के अनुबंध
धर्म-जाति , राज - काज
राग द्वेष , कल और आज
सब पर हो कर निशंक
आधुनिका सी विचारों को बांचती
मुझमें सामर्थ्य कहाँ
मैं जो करूँ उसकी सृष्टि
शारदे की दया दृष्टि
शब्दों प्रचुर वृष्टि
और भावना की संतुष्टि
जब-जब हो जाती है
कविता बन जाती है !
कविता बन जाती है !
12 comments:
भावपूर्ण रचना . धन्यवाद
behad bhaavpoorna rachna.......
जब-जब हो जाती है
कविता बन जाती है !
कविता बन जाती है
bilkul sahi.....
aur phir hum tak pahunch jati hai......bahut sundar
बहुत ही उम्दा व सुन्दर रचना।
Kitnee niragasta hai is rachname!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
मॉ शारदे का आशीर्वाद बना रहे, और हम सभी को सुन्दर रचनाए पढ्ने को मिलती रहे.
ज्योत्स्ना जी की ये कविता एक तरह से उनके पूरे व्यक्तित्व और रचना प्रक्रिया का दिग्दर्शन कराती है.
अतिउत्तम शब्द रचना........
शुभकामनाएं सखी.......
आदि से अंत तक,अंग-प्रत्यंग कविता का मनोहार बांचा आपने....
साड़ी की साड़ी पंक्तियाँ सुन्दर और भावपूर्ण शब्दों से रचित है,
"मैं जो करूँ उसकी सृष्टि
शारदे की दया दृष्टि
शब्दों प्रचुर वृष्टि
और भावना की संतुष्टि
जब-जब हो जाती है
कविता बन जाती है !
कविता बन जाती है !"
अदभुत है । आपकी काव्य-सामर्थ्य उत्फुल्ल करती है । आभार ।
भाव को संजोए वह
शब्द से लिपट गयी
कहीं छन्द सी खनकती
प्रकृति के निकट गयी
कभी शरमाई
मन घूँघट से ताकती
कभी सबकी
पीड़ा के अंतर में झाँकती
कभी सकुचाई
सम-सामयिक को बांचती
चिंतन के चितवन से
देखती समाज को
तोड़ छन्द - बँध
jyotsna
bahut hi achi dharapravah kavya shamta se bherpur ye kavita ..ukt panktiyon mein apne saroch per hai ..eski jitni taarif ki jaye kum hai...bahut acha laga aapki kavita v bhav padhker ..badhai
sundar rachna aur iski rachnaprkriya
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