Monday, October 12, 2009

"दिवास्वप्न"

बहुत ज़रूरी है,
जीवन में वह
सांसों की तरह---

मैं उसे अंतर तक समा लेती हूँ,
सांसों की ही तरह,
पर उसे,
मेरे अंतर में सिमटने से,
घुटन होती है----

वह आकाश की ऊंचाइयों को
छूना चाहता है,
पक्षियों-सा
उड़ना चाहता है,

पर्वतों पर
उछलना चाहता है,
तितलियों के रंग ,
मुट्ठी में भरना चाहता है-----

आवारा जंगलों में ,
घूमना चाहता है,
हर पत्ते पर
अपना नाम लिखना चाहता है,
समुद्र की गहराइयों को
नापना चाहता है----

झीलों में जलतरंग का
संगीत भरना चाहता है,
चांद पर टहलना चाहता है,
चाँदनी से बतियाना चाहता है----

अब वह उन्मुक्त है,
मेरा अपनत्व उसे बांधता नहीं,
मैं खुश हूँ यह सोचकर---

यदि वह मेरा है तो,
लौटकर आएगा, मेरे पास ,
यदि नहीं आया वह तो,
"वो"खुली आँखों से,
दिन में देखा गया,
एक सुन्दर दिवास्वप्न था

15 comments:

M VERMA said...

यदि नहीं आया वह तो,
"वो"खुली आँखों से,
दिन में देखा गया,
एक सुन्दर दिवास्वप्न था
सही है. जो लौटेगा नही वो अपना कैसे?

Mishra Pankaj said...

सुन्दर रचना
आप हमारी कल की चर्चा देखिये आप उसमे शामिल है

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना !!

अनिल कान्त said...

वाह क्या खूबी से आपने यह सब लिखा है
मुझे बहुत पसंद आई आपकी रचना

हेमन्त कुमार said...

स्वप्न दिवा हों या रात्रि
उसमें
छिपी होती हैं
अनन्त की अभिव्यक्ति...।
आभार ।

Udan Tashtari said...

यदि वह मेरा है तो,
लौटकर आएगा, मेरे पास ,
यदि नहीं आया वह तो,
"वो"खुली आँखों से,
दिन में देखा गया,
एक सुन्दर दिवास्वप्न था

--बहुत उम्दा!!

प्रदीप मानोरिया said...

bahutsundar bhavna sugathit shabd rachna badhaaii

रश्मि प्रभा... said...

yadi nahi aaya to diwaswapn......waah

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

यदि वह मेरा है तो,
लौटकर आएगा, मेरे पास ,
यदि नहीं आया वह तो,
"वो"खुली आँखों से,
दिन में देखा गया,
एक सुन्दर दिवास्वप्न था

acchi line hai.

bahut badiya.

[choudhary amit kr. 'A,}

ρяєєтii said...

behad Bhaavpurn Rachna... Waah...!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुंदर व्यंजनाएं।
दीपपर्व की अशेष शुभकामनाएँ।
आप ब्लॉग जगत में महादेवी सा यश पाएं।

-------------------------
आइए हम पर्यावरण और ब्लॉगिंग को भी सुरक्षित बनाएं।

Unknown said...

बहुत सही है हम हर अच्छी लगने बाली चीज को अपने पास समेट लेना चाहते है लेकिन उसका होना तभी सार्थक है जब वो चहु ओर अप्नी अभा फ़ैलाये
अगर वो हमारा है तो हमारा ही रहेगा और नही है हमारा तो स्वप्न का ही आनन्द ले

R. Venukumar said...

झीलों में जलतरंग का
संगीत भरना चाहता है,
चांद पर टहलना चाहता है,
चाँदनी से बतियाना चाहता है----

अब वह उन्मुक्त है,
मेरा अपनत्व उसे बांधता नहीं,
मैं खुश हूँ यह सोचकर---

Achchi soch badhai...

आशु said...

उसके आने की खबर-

'बसंत' को ले आती है
हजारों ख्वाब रंगीन हो जाते हैं
चेहरा खिल जाता है
भावनाएं महक उठती हैं
भँवरे तो नहीं,
पर दिल गुनगुनाता है....

अति सुन्दर भाव..सुन्दर रचना

आशु

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