प्रकृति अनुरागी श्री अनिरुद्ध जी के साक्षात्कार को आप सभी ने पढ़ा, व सराहा. उनके द्वारा भोजपुरी भाषा में रचित काव्य संग्रह "पनिहारिन" अपनी माटी की सोंधी सुगंध का एहसास दिलाती है. विहान के गीत , साँझ के गीत, खेत-खलिहान के गीत, देश-गीत, छंद, लय,अलंकार आदि सभी साहित्य की परंपरा का अनुनाद करते हैं.
नवदिवस का स्वागत करती सूर्य की प्रथम रश्मि पनिहारिनों के आगमन का सन्देश देती है --
"पनिहारिन भरल डगरिया, भोर पहर की बेला |
एक घइलिया माथे बइठल,दूजा चढ़ल कमरिया,
घइला में गलबँहिंया देले, लपकत चलल संवरिया,
लहर-लहर पुरवइया लहरे, लहंगा लहर भरेला ||"
सूर्य की पहली किरण हो अथवा संध्या- समय के रक्ताभ आकाश का किसी सरोवर में समाना, अनिरुद्ध जी के गीत प्रकृति से मानव को जोडते हैं--
"ताल-ताल,नदिया दिन भर फेंके जाल सुरुज
खींचे गुटिआवे अब लाल-लाल डोरी
झांझ साँझ झमकावे किरण सोन मछरी ला
मछुआ मग झांके गछिया सांवर गोरी"
संध्या सुंदरी अपनी झांझर झनकाकर बाट जोह रही है,उस सूर्यरूपी मछुहारे की जो किरण रुपी सोने की मछली लाने के लिए दिन भर जाल फेंकता है सरोवरों में.अब लाल-लाल डोरियों को घसीट कर उन्हें इकठ्ठा कर रहा है.
ऋतु-गीतों को प्रकृति के आँचल पर अलग-अलग संवेदना, और अद्भुत रंगों से सजाने में अनिरुद्ध जी का कोई सानी नहीं. सावन में गाईजाने वाली कजरी का विरह-नाद हो, या फूलों के रंग में रंगे वसंत का अलसाया यौवन, होली की ठिठोली हो, या चैता की एकांत उदासी, सभी का अपना स्थान कवि के गीतों में सुनिश्चित है--
"महुआ बन फूल झरे, मद मातल नैना रे
महकत मग धूर ,हवा पी बोतल बैना रे"
"धरती ओढ़े रंगल दोलाई, धानी बिछल चदरिया
पीयर रंगल छींट के पगड़ी, हरियल रंगल घंघरिया"
सन १९६२ में भारत-चीन युद्ध काल में समय की मांग को देखते हुए अनिरुद्ध जी ने देश के जवानों में जोश भरने के लिए अनेक देश गीतों की रचना की. अनिरुद्ध जी द्वारा भोजपुरी भाषा में लिखा गया प्रयाण-गीत हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के अत्यंत ओजपूर्ण गीतों में से एक है --
"आज महाधार में, देस के पुकार बा,
करम के गोहार बा,सामने पहाड़ बा,
तू जवान बढ़ चल, झूम-झूम बढ़ चल
बान बन कमान पर,सनसनात चल चल "
व्याकरण की दृष्टि से समृद्ध उनके गीत साहित्य की अनुपम धरोहर हैं, अनिरुद्ध जी के गीतों की मूर्धन्य साहित्यकारों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है---
"श्री अनिरुद्ध जी की रचनाएँ सुनने का प्रायः ही अवसर मिला है.जिन लोगों ने भोजपुरी के ग्रामीण सौंदर्य की रक्षा करते हुए उसमें माधुरी और लालित्य भरने की कोशिश की है, उनमें अनिरुद्ध जी एक प्रमुख युवक हैं. इनका मधुर कंठ इनके गीतों में और भी रस भर देता है. मेरी कामना अनिरुद्ध जी चिरंजीवी हों और अपनी वाणी की रस माधुरी से लोगों के हृदयों को तृप्ति देते रहें."
श्री रामवृक्ष बेनीपुरी मांझी
२५-१-५३
"अनिरुद्ध जी की कविताएँ बहुत ही सरस और अनूठी कल्पना से अलंकृत हैं. मैं समझता हूँ कि उनमें ओजगुण की वृद्धि और होगी. नि:संदेह उनमें एक प्रतिभाशाली कवि की रचना शक्ति है. मैं उनके विकास को उत्सुकता से देखता रहूँगा."
रामविलास शर्मा छपरा
१-६-५३
"श्री अनिरुद्ध जी के गीतों में भोजपुरी के प्राणों का आर्द्र माधुर्य है. एक ऐसी निश्छल सरलता, जो रसानुभूति से द्रवित हो गीत की कड़ी बन जाये, कवि अनिरुद्ध में पाई जाती है. परिमार्जन के पश्चात गीतों के आकाश में कवि के प्रिय स्वरों को उड़ान भरने योग्य पर प्राप्त होंगे. इतना ही नहीं, अधिक तन्मयता उन्हें जन-जन के मन प्राणों में नीड़ बनाकर बस जाने की क्षमता प्रदान करेगी, विश्वास है.
जानकी वल्लभ शास्त्री हाजीपुर
३१-१०-५५
"अनिरुद्ध जी की भोजपुरी कविताएँ बड़ी सुन्दर और सामयिक हैं. होनहार कवि के आगे बढ़ाने की कामना करता हूँ.
राहुल सांकृत्यायन छपरा
१८-१-५६
"श्री अनिरुद्ध जी भोजपुरी काव्य के रससिद्ध कवि हैं.कविताओं में रस का स्रोत उमड़ पडता है.इनके पढने में भी वह जादू है कि सुनने वाले विभोर हो उठाते हैं .जहाँ तक भोजपुरी कविताएँ सुनने को मिली हैं, मुझे अनिरुद्ध जी की कविता सबसे अधिक पसंद आई है. मैं इनके उत्तरोत्तर विकास की कामना करता हूँ."
श्री श्याम नारायण पाण्डेय आजमगढ़
१२-२-५६
"श्रीअनिरुद्ध जी की रचना "पनिहारिन"सुना. उसमें ग्राम को छूकर बहती नदी का प्रवाह है.स्वाभाविकता के साथ ही साथ माधुर्य की छटा जो कवि ने उसमें भर दी है उससे ऐसा प्रतीत होता है जैसे, उसमें फूलों के साथ -साथ दीप भी जलते बह रहे हों. उसकी गूँज मेरे कानों में बहुत दिनों बनी रहेगी."
बच्चन छपरा
२६-११-५६