Monday, November 24, 2008

प्रेम डोर

तुम नैनों की राह चले
मन प्रागंण में कैसे पहुँचे?
पलकों के पहरेदार मेरे
क्या कर्तव्यों को भूल गए?

तुम आ ही गए कोई बात नही
था शांत भाव रखना तुमको
इस तुच्छ त्याज्य तन को छू कर
क्यों किया व्यथित तुमने मुझको?

है प्रेम पल्लवित पोषित तुमसे
जीवन का हो तुम स्पंदन
फिर क्यों घृणा उपजती मन में
चलता रहता ये मन-मंथन

हूँ क्षुब्ध आह! क्यों प्रेम किया
तुम जैसे नर-तन प्राणी से?
तुम तो वो प्रेम पिपासु नही
तुम प्यासे थे नारी तन के...

है एक यवनिका मध्य हमारे
खिंची हुई अंतस्थल में
जब तुम खींचोगे प्रेम डोर
वह स्वयं हटेगी उस पल में.

17 comments:

Unknown said...

shabdon ka chayan ati sundar hai.
aadhunik yug mein nishchhal prem samapt ho raha hai.Apki rachna ne ye darshaya hai.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।एक भाव्भीनी रचना है।

है प्रेम पल्लवित पोषित तुमसे
जीवन का हो तुम स्पंदन
फिर क्यों घृणा उपजती मन में
चलता रहता ये मन-मंथन

Himanshu Pandey said...

सुंदर रचना . चिट्ठाजगत में स्वागत है .
धन्यवाद .

anubhooti said...

sandesh deti yeh kavita
un purushon ko jo nari man ki bhawanaon ko nahin uske bhautik saundarya ko prathmikta dete hain

Varun Kumar Jaiswal said...

ज्योत्सना जी आपकी रचना ने मन को मोह लिया कृपया इसी तरह से लिखती रहें और महिलाओ को इस क्षेत्र मे
लाने का प्रयास और प्रेरणा देती रहें | कभी फ़ुर्सत हो तो मेरे ब्लॉग पर स्वागत है |

Udan Tashtari said...

है प्रेम पल्लवित पोषित तुमसे
जीवन का हो तुम स्पंदन
फिर क्यों घृणा उपजती मन में
चलता रहता ये मन-मंथन

-सुन्दर शिल्प एवं कोमल भाव लिए रचना पसंद आई. बधाई.

प्रदीप मानोरिया said...

सुंदर शब्द उत्तम भावः बधाई

Anonymous said...

सुंदर भाव। बधाई।

Kautsa said...

आह! क्यों प्रेम किया.. गहन
अन्‍तर्द्वन्‍द में कविता सारथी भी बन जाती है। शुभकामना।

prakharhindutva said...

kabhi mere blog par bhi padhar kar tippani de


www.prakharhindu.blogspot.com

art said...

bahut hi sundar jyotsna ji .....bahut hi pasand aayi aapki lekhan shaili...saabhaar
swati

vimi said...

dil ko choo lene vale bhaav !!

nehasaraswt said...

laga jaise mere antar chipe bhav mere samane rakh diye gaye hon.... bhasha saral ho kar bhi bahut sundar hai.... fir fir padhane ki icha hoti hai.... mere blog par samay ho to jaroor aiye aur tippani kijiye....

प्रदीप मानोरिया said...

सार्थक पंक्तियाँ सुंदर विचार यथार्थ को उकेरते आपके गहरे विचार और मजेदार
अत्यन्त भावभीनी अभिव्यक्ति आपकी विशेषता है ह्रदय स्पर्शी भावों से सजीकविता के लिए आपको हार्दिक बधाई

वर्तिका said...

sunder abhivyakti... ant bahut hi sunder hai...

with regards

Unknown said...

bahut achchi kavita hai man ko bhed gayi

Unknown said...

सुंदर रचना मन को मोह लिया
KUKKoo

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