गतांक से आगे.......
अपनेपन का बोध कराती दीदी की एक रचना के साथ फ़िर उनके विषय में कुछ कहने का प्रयास कर रही हूँ----
वक्त हो तो बैठो
दिल की बात करूँ....
कुछ नमी हो आंखों में
तो दिल की बात करूँ...
तुम क्या जानो,
अरसा बीता,
दिल की कोई बात नहीं की,
कहाँ से टूटा
कितना टूटा-
किसी को ना बतला पाई,
रिश्तों के संकुचित जाल में
दिल की धड़कनें गुम हो गईं !
पैसों की लम्बी रेस में
सारे चेहरे बदल गए हैं
दिल की कोई जगह नहीं है
एक बेमानी चीज है ये !
पर मैंने हार नहीं मानी है
दिल की खोज अब भी जारी है....
वक्त है गर तो बैठो पास
सुनो धड़कनें दिल की
इसमें धुन है बचपन की
जो थामता है -
रिश्तों का दामन फिर.............
वक्त हो तो बैठो,
दिल की कोई बात करूँ..........
अपनी बहुत सी कविताओं में से कुछ कविताओं में अपने जीवन का निचोड़ समेटे वह अपनी घनीभूत पीडाओं की तीव्रता से कहीं अधिक सहनशील हैं या यूँ कह लीजिये ---- पीडाओं की तीव्रता उनकी सहनशक्ति को और भी बढ़ा देती है. वे कहती हैं-"दर्द माँजता है, और हमें चमका देता है!"
संघर्ष उनके जीवन का सत्य है, तभी तो वो मुझे अपने दुःख से भी दुखी नही होने देतीं-"जो कुछ हुआ और जो हो रहा है, वह जीवन का सत्य है. उससे दुखी मत हो. मंथन करती रहो. अमृत को गृहण कर लो, विष को त्याग दो. ये जीवन स्वयं विसंगतियों से निकलने का मार्ग प्रशस्त करता है. जीवन के उतार-चढाव ही जीवन के हर रूप को समझाते हैं----
ये सच है,
मैं पैसे नहीं जमा कर पायी!
ये भी सच है,
मैं रिश्तों की पोटली नहीं बाँध सकी!
मेरी बेटी ने पूछा एक दिन-
"क्या मिला तुम्हे?"
मैंने सहज ढंग से कहा,
"वही-जो कर्ण को मिला...."
उसने पूछा - हार?
मैंने कहा -नहीं,
वही, जो पार्थ की जीत के बाद भी
कर्ण को ही मिला.......
तुम सब ख़ुद
नाम लेते हो कर्ण का
तो फिर प्रश्न कैसा?
"वह मुस्कुराई,
उसकी आंखों में
मुझे मेरी जीत नज़र आई।
दुनिया कहती है,
"जो जीता वही सिकंदर...."
पर सत्य था कुरुक्षेत्र!
जहाँ सारथी बने कृष्ण ने
कर्ण की पहुँच से
दूर भगाया अर्जुन को,
लिया सहारा छल का,
पर मनाने न दिया जीत का जश्न॥
सम्मान दिया उस तेज को..............
तो,यही जीत होती है!
जब भी मैं अपने अन्तर की पीड़ा उनसे बांटती, वे अपनी पीड़ा को भूल एक नई आसा के साथ मुझे जीवंत करती. उनके काव्य का आशावाद मेरी निराशा को पीछे ढकेल देता. इसके लिए शायद अलग से कोई उदहारण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नही है. आप उनकी जितनी भी कविताएँ मेरे लेख के माध्यम से पढ़ रहे हैं, वे स्वयं उनके आशावाद का उदहारण हैं.
"मैं दुआ की तरह तुम्हारा साथ दूँगी तुम अपनी कलम पर और स्वयं पर विशवास रखो.तुम्हे जब भी मेरी ज़रूरत हो मुझे याद कर लेना, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ"----
अगर कभी मेरी ज़रूरत हो
मंदिर में एक दिया जला देना
दरगाह पे एक धागा बाँध देना
मैं कहीं भी रहूँ
तुम्हारी आवाज़ इस माध्यम से पहुँचेगी मेरे पास
यकीनन मेरी शुभकामनाएं
तुम्हें सुरक्षित करेंगी............
वे कहती हैं----"सपने देखो, उन्हें पूरा करने के लिए उन्हें बुनो, मेरे पास बहुत से सपने हैं, खयाली रूमानी और आसमानी। मुझसे सपने ले जाओ और बदले में इठलाती-खिलखिलाती एक निश्छल हँसी मुझे दे जाओ.
मेरे पास सपने हैं,
खरीदोगे?
आसमानी , रूमानी , ख्याली.....
कीमत तो है कुछ अधिक ,
पर कोई सपने बेमानी नहीं.......
जो भी लो-हकीकत बनेंगे,
शक की गुंजाइश नहीं!
.....कीमत है - एक मुस्कान,
सच्ची मुस्कान,
झरने-सी खिलखिलाती,
हवाओं - सी गुनगुनाती,
बादलों- सी इठलाती.......
आज की भागमभाग में
इसी की ज़रूरत है !
तुम एक सपना लो-
और मेरे पास एक मुस्कान दे जाओ,
.......
इनसे ही मेरे घर का चूल्हा जलता है!
क्रमशः...
नोट: कृपया दीदी की कविताओं से सजी इस रचना को अपना प्यार अवश्य दें.
21 comments:
The poem was to good. But in some places it became more like a statement, breaking the rhythm and making it arrhythmic. I guess, little more effort can take it to nicer side.
Siddharth
Atyant Sundar!
Issey jyada kuch keh nahi sakta.
hello jyotsna g ... i just gone through ur blog...
bahut acchi rachna he.... karn wali rachna bahut accha thoght he ... hats off to u ....
but kabh kahi mujhe laga kuch baaten aur short me aur effectively kahi ja sakti thi .......(in composition).
best wishes to u ....
बहुत अच्छी लगी मुझे आपकी यह रचना
मेरे पास तो कहने को कुछ है ही नहीं,बस तुम्हारी भावनाओं को
छू रही हूँ.......मेरा स्पर्श ही कुछ कहता जायेगा और तुम समझ
लोगी......
jyotsana ji
aaj pahli baar apka blog dekha..bahut sukhad ahsas hua mujhe..
padke sawal utha ki dd hahi kon apki..magar rachnao se jaan gayee aap meri bhi priy rashmi ji ki bata kar rahi hai mere hisab se...
rachnaye nisandeh bahut achi lagi mujhe...aur unke baare mein bas itna kahungi hamne dkehi hai un ankho ki mahkati khusboo hath se chhuke inhe risto ka ilzaam na do...
pyar ke sath
मेरे पास सपने हैं,
खरीदोगे?
आसमानी , रूमानी , ख्याली.....
कीमत तो है कुछ अधिक ,
पर कोई सपने बेमानी नहीं.......
जो भी लो-हकीकत बनेंगे,
शक की गुंजाइश नहीं!
.....कीमत है - एक मुस्कान,
सच्ची मुस्कान,
मुश्किल यही है की अब भागदौड़ ओर आत्मकेंद्रित जीवन में सच्ची मुस्कान का मिलना भी मुश्किल है......बेहद मुश्किल....आपकी दीदी की ये कविता सबसे अच्छी है ओर जीवन के नजदीक भी.....
namaste mam...पढ़कर ऐसा लगा जैसे आप रश्मि माँ की रचनाओं पर शोध कर रही है! आप माँ की रचनाओ को इतने ध्यानपूर्वक पढ़ती है,जानकार मुझे बहुत ख़ुशी हुई! आपने उनकी रचनाओं को जो सम्मान दिया और सबसे बड़ी बात ये है की आपने माँ को व्यक्तिगत रूप से जो सम्मान दिया....इसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया
Jyotsna ji..
aj pahli baar aap ke blog ko padha...
rashmi di ke liye aap ki bhavnaye shabdshah..sahi hai...
maine bhi di se milke apne aap ko pahle se kahi adheek majbut bante paya hai...
didi ke shabdo me...apntav me gajab ka aakarshan hai....aseem himmat hai....
aapne didi ko bahot sundar shabdo me varneet kiya hai...
"कमाल है! "
बहुत अच्छी लगी
ssomseपैसों की रेस ने भी और वक्त ने भी रिश्ते बदल दिए हैं
really very nice poems written by your didi and welcome to you for the nice presentation
kaphi khubsurati se apni rachna ko apne sub ke samne rakha hai iske bare me likhne ke liye mujhe sabd nahi mil rahe hai..
aapko bahut badhai , jo aapne itni acchi nazmen likhi ..
aapko badhai ..
pls read my blog for new poems .
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
बहुत ही खूबसूरत दीदी जो आपने इस शब्द को चुना है मैं आपका नियमित पाठक बन गया हूँ क्योंकि मैं अपनी दीदी से बहुत प्यार करता हूँ।
bahut sundar!dhanyvad!
बहुत ही अद्भुत बात कह दी है कर्ण के उद्धरण के साथ ...
साधुवाद..
i am निशब्द .... कुछ गुंजाईश ही नहीं रखी आपने शब्दों की ... Di ur just amazing...
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