Tuesday, January 20, 2009

मन झाँक ज़रा मन के कोने...

मन झाँक ज़रा मन के कोने,
कुछ पाकर, लगा बहुत खोने.

मन के भीतर था प्रेम भरा
एक बूँद ईर्ष्या क्यों डाली?
ईर्ष्या का कालापन धोने को
दिन देखो अभी लगें कितने?

मन झाँक ज़रा.....

निश्छल हो कर करता था कार्य
एक स्वार्थ संग तू क्यों लाया?
स्वारथ से तेरे देख ज़रा
दूसरो के सपने लगे खोने

मन झाँक ज़रा......

दूसरो के दुःख से खुश होकर
ख़ुद को कितना तू गिराता है
जब आँहें बनेंगी आग,
लगेगा तू धू-धू करके जलने

मन झाँक ज़रा.......

देखो अब वक्त न खो जाए,
जाने का फ़ैसला हो जाए
अब प्रेम और संतोष दया का
बीज लगो मन में बोने

मन झाँक ज़रा.......
कुछ पाकर लगा........

29 comments:

Unknown said...

acchi hai,
par laybadhata ki kami hai,
ya phir meri smajh se pare hai,

waise aapne likhi hai to kuch matlab jarror hoga.

par acchi hai. badhai!!!

Vikash said...

अमित जी से सहमत हूँ. लयबद्धता की कमी लगती है. कविता में लय के होना आवश्यक नहीं समझता - लेकिन जिस तरह से आपने कविता लिखी है, उससे लगता है कि आपने कोशिश तो वही की थी. कविता अच्छी है कि जगह कोशिश अच्छी है कहूँगा.

(लिजीए आलोचना. आशा है आप बुरा नहीं मानेंगी)

संगीता पुरी said...

अच्‍दी लगी मुझे ।

प्रदीप मानोरिया said...

ज्योत्स्ना जी आपकी कविता सच में ह्रदय को छु लेती है वास्तव में इसको गाकर पढने में बहुत मज़ा आया .. कितने गहरे सुंदर भावः पिरोये हैं आपकी लेखनी ने गज़ब कर दिया

Udan Tashtari said...

सुन्दर भाव.

mehek said...

bahut sundar

डॉ .अनुराग said...

भावपूर्ण..ओर कई तथ्यों के बीच से गुजरती हुई

makrand said...

bahut sunder rachana

BrijmohanShrivastava said...

बहुत ही अच्छी बात कह दी ,ईर्ष्या की एक बूँद को खत्म करना बहुत ही दुष्कर कार्य है /दूसरी बात मन में यदि स्वार्थ का निवास हो तो दोनो ही लोक ख़राब होने की प्रवल संभावनाएं बलवती होती हैं /दूसरों के दुःख से खुश होने वाला अंत की बात सोचता ही कव है /प्रेम संतोष और दया के बीज भी तभी पनपेंगे जब इन खुराफातों के खरपतवार सतसंगत से मिटा दिए जायेंगे

Unknown said...

man ke kamiyo kee ujagar kartee aur unhe door karne kaa agrah kartee kavitaa asal mai ek suvichaar hai subhashit hai aur hai ek shaandaar sankalp. badhaai

maverick said...

मन झाँक ज़रा मन के कोने,
कुछ पाकर, लगा बहुत खोने.


bahut hi khoobsurat soch ...

soch baut hi khoobsurat he mam hamesha ki tarah par mujhe is baar utna maja nahi aaya jitna har baar aata he ....
but still... ye do lines just amazing....

Aman Dalal said...

रचना भावपूर्ण हैं,व्यक्तिगत रूप से मुझे भाव प्रभावशाली लगे,
शब्दों के बंधन में कुछ कमी नज़र हुई..
शेष प्रभावशील ...अमन 'बस अमन'

Ashk said...

JAYOTSNA PANDEY JEE
SARAVPRATHAM "LADKIYAN CHHOONA CHAHTEE HAIN AASMAAN "PAR APNE VICHAR PRAKAT KARNE KE LIYE DHANYAD!
RASHMI PRABHA JEE NE MAN SE SAMEEKSHAKEE HAI.
*APKEE KAVITA ACHHEE LAGEE.MAN BHAV PRADHAN HOTA HAI.KAVITA ISEELYE BHAV PRADHAN HAI.
-ashok lav
ashok_lav1@yahoo.co.in

Bhavesh (भावेश ) said...

आपका बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरे ब्लॉग के प्रथम प्रयास को सराहा. अभी लिखने को बहुत कुछ है बस थोड़ा समय मिलते ही पहले ब्लॉग से अभिक्ष होना चाहूँगा और उसके पश्च्यात कोशिश करूँगा की नियमित तौर पर थोड़ा वक्त ब्लॉग को दे सकू. एक बार फिर आपका हौसला अफजाही के लिए शुक्रिया.

ρяєєтii said...

दोस्त जी...
जहा प्रेम होता है वहा इर्षा तो अपने आप् आती है ...क्यों की हम जिसे प्रेम करते है , उसे खोना नहीं चाहते , शायद उसे take it Granted लेने लगते है .. सो इर्षा स्वाभाविक ही है ...
बहोत अच्छा प्रयास ...

hem pandey said...

देखो अब वक्त न खो जाए,
जाने का फ़ैसला हो जाए
अब प्रेम और संतोष दया का
बीज लगो मन में बोने

मन में प्रेम,दया और संतोष के बीज प्रारंभ से ही बोए जाने चाहिए, जाने का फैसला होने की संभावना से नहीं.

himanshu said...

adbhut, kash ki hum itni aasani se apne man ke andar jhank sakte aur bahar ki duniya ko khoobsoorat bana sakte.......

अवाम said...

सुंदर रचना.

Krishna Patel said...

मन झाँक ज़रा मन के कोने,
कुछ पाकर, लगा बहुत खोने.

मन के भीतर था प्रेम भरा
एक बूँद ईर्ष्या क्यों डाली?
ईर्ष्या का कालापन धोने को
दिन देखो अभी लगें कितने?

bahut achchhi kavita hai.

विक्रांत बेशर्मा said...

बहुत ही भावपूर्ण कविता है !!!!

Anonymous said...

गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।

anubhooti said...

भावों की अभिव्यक्ति अच्छी है , एक सन्देश देती है पंक्तियाँ ,सृजन करना कठिन है , विनाश करना सरल है , कुछ भी गलत न हो , इसलिए अपना स्वाभाव बनायें कि सोच समझ कर अपना अगला कदम बढाया जाये ,और प्रेम ,करुना, मित्रता , सहृदयता ,सहजता, सरलता, निश्छलता का भाव मन में सदैव बना रहे.

महेंद्र मिश्र.... said...

मन झाँक ज़रा मन के कोने,
कुछ पाकर, लगा बहुत खोने.
अच्छी कविता है.सुंदर भावः

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

मन के भीतर था प्रेम भरा
एक बूँद ईर्ष्या क्यों डाली?
ईर्ष्या का कालापन धोने को
दिन देखो अभी लगें कितने?
................
देखो अब वक्त न खो जाए,
जाने का फ़ैसला हो जाए
अब प्रेम और संतोष दया का
बीज लगो मन में बोने
................

बहुत ही सुंदर बात कही है आपने अपनी कविता में. डा. रामकुमार वर्मा का लेख याद आ गया-"इर्ष्या तू न गयी मेरे मन से". यह इर्ष्या और दंभ ही तो जीवन में सारे क्लेश पैदा करता है.
सुंदर कविता.

वर्तिका said...

rachnaa mein saamne rakhe vichaar sunder hain aur bahtu sehejta k saath rakhe gaye hain , parantu flow thoda smooth nahin laga humein.... rachnaameonm sacchai jhalakti hai...

Amit Kumar Yadav said...

Bahut sundar...!!
___________________________________
युवा शक्ति को समर्पित ब्लॉग http://yuva-jagat.blogspot.com/ पर आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??

Vinod Rajagopal said...

Bohot Sundar!!!

Anonymous said...

रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति

Atul Sharma said...

एक सुंदर और निश्‍छल प्रेमगीत के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।

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