जब भी कोई दस्तक होती है
मैं दौड़ जाती हूँ
कहीं तुम तो नहीं
जाने क्यों?
तुम्हारा ही इंतज़ार रहता है,
इन आँखों को
अब तो आदत सी
हो गयी मुझको
हर वक़्त एक दस्तक सुनायी देती है
तुम्हारे आने की आहट
खुशबू सी फैलाती
मेरे मन मैं सिमट जाती है
" तुम मेरे भीतर हो "
मुझमें समाहित...
तो क्यों मैं दूर हूँ तुमसे
और फिर ये दस्तक कैसी?
शायद तुम दस्तक देकर
मेरे " मैं " को बाहर निकलना चाहते हो
ताकि हम हो सकें एक ...
22 comments:
waah ! waah ! waah !
atisundar bhaav aur manohari abhivyakti....bahut hi sundar..
ह्रदय को छु जाने वाले भावों को समेटे आपकी कलम का अनुपम करतब सच में अन्तरंग गहराइयों को व्यक्त करती कविता
is dastak ko mehsoos karne ki baat hai. Har insaan nahi kar sakta hai...
wah!!! ati sundar!!!
आपकी इस कविता को पढ़ते हुए महादेवी वर्मा की कुछ पंक्तियाँ याद हो आईं -
तुम मुझमें प्रिय ! फिर परिचय क्या !
तेरा मुख सहास अरुणोदय,
परछाईं रजनी विषादमय,
यह जागृति वह नींद स्वप्नमय,
खेल-खेल थक-थक सोने दो
मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या !
बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति।
बहुत ही सुंदर भाव. अच्छी प्रस्तुति.
सुंदर भाव
वाह!
इस दस्तक के बारे में क्या कहूं?
एक आध्यात्मिक दस्तक है...
निसंदेह.....खूब कहा .एक गाना याद आया .जरा सी आहट होती है
प्यार भरी दस्तक की खुशबू इतनी पवित्र होती है , जो मन् को छु कर एक् अप्रतिम एहसास महसूस करवाती है .
बहोत अद्वितीय है यह " दस्तक " दोस्त जी ... Luvssss.
khushboo yhan jaipur tak aa gyi. badhayi.
ज्योत्स्ना जी ,आपकी ये कविता मुझे परेशान कर रही है ,ये कैसे संभव है की आप उसके पीछे दौडें ,और फिर भी अहम् ख़त्म न हो रहा हो ?हाँ ये दस्तक , उसको न पकड़ पाने की कुंठा और साथ ही पैदा हो रहा अनुनाद निश्चित तौर पर महान परिस्थितियां पैदा कर रहा है |हम आज कह सकते हैं कि आपकी कविता सिर्फ शब्दों का मकद जाल नहीं है बल्कि व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का चरम है ,जैसी आप हैं वैसी आपकी कविता | स्वीकार करें मेरा अभिवादन इन तीन पंक्तियों के साथ |
ज़मीं भी उसकी,ज़मी की नेमतें उसकी
ये सब उसी का है,घर भी,ये घर के बंदे भी
खुदा से कहिये,कभी वो भी अपने घर आयें!
ज्योत्सना जी ,सुन्दर रचना के लिए बधाई. और दिल की महफ़िल में आने के लिए धन्यवाद .
शायद तुम दस्तक देकर
मेरे " मैं " को बाहर निकलना चाहते हो
ताकि हम हो सकें एक ...
bahut hee sashakt bhaav
शायद तुम दस्तक देकर
मेरे " मैं " को बाहर निकलना चाहते हो
ताकि हम हो सकें एक ...
bahut hee sashakt bhaav
bahut achhi kavita hai...... dil se badhai
मैंने दस्तक दी,
और प्यारे एहसास मेरे आस-पास इकठ्ठे हो गए,
प्यार की सम्मोहक दस्तक है रचना में,बधाई और शुभकामनायें.......
ज्योत्सना जी
बड़ी भावनात्मक कविता है >>
"शायद तुम दस्तक देकर, मेरे " मैं " को बाहर निकलना चाहते हो"
यथार्थ परक है....
-विजय तिवारी ' किसलय '
this is how one can express sophisticated of thoughts in the simplest words possible. That was stupendous. I too wish to start publishing my own NAZM etc. Wish to get your supervision...
मुजमे मै समाया हुवा हु ,
पर खुद को ही कभी मिलता नहीं मै..
यादो की दस्तक और इंतजार की दस्तक ,
उसी में मै ढूंढ़ता हु खुद को ...
नीता कोटेचा
ek achchhi kavita ke liye sadhuwad.
omprakash yati
ज्योत्सना जी ,सुन्दर रचना के लिए बधाई.
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