bahut hee sundar, sach kahun to sheeershak padh kar hee lag gaya thaa ki kuchh khaas hogaa, apkee lekhanee aur blog apke parichay ne sabhee kuchh ne prabhaavit kiya.
वाकई आप कितने विश्वास से इतनी बड़ी बात कह गईं कि " यकीन न हो तो साँसें ज़रा आहिस्ता लो मेरी साँसों को खुद की साँसों में घुला पाओगे" निश्छल प्रेम में ही ये संभव है. - विजय
बहुत दिनों बाद कोई अच्छी कविता पढने को मिली ,आम तौर पर हिंदी कविता में प्रेम के नाम पर कुंठा ,व्यक्तिवाद,स्त्री -पुरुष की जटिल मनस्थितियों को ही परोसा जा रहा है ,जिसकी वजह से प्रेम के अतिरिक्त और सब कुछ नजर आने लगता है और कविता भुला दी जाती है |लेकिन ज्योत्स्ना जी की कविता में ऐसा नहीं है | चाँद को चख लेने की बात ,समर्पण का बेहद खुबसूरत पर्याय बन गयी है ऐसा लगता है जैसे एक एक शब्द को बेहद स्नेहिल ढंग से सज्जित कर उसे किसी नायिका की तरह तैयार किया गया है ,इतनी सुन्दर पंक्ति पढ़कर चांदनी का दिल न धड़कता हो तो भी धड़केगा ,और हाँ हवा में घुलता साँसों का घेरा कितनी तीव्रता से हर दिशा में dilute हो रहा है ,ये हम साफ़ देख रहे हैं |ये ज्योत्स्ना जी की लिखी अब तक की सबसे बेहतरीन कविता है ये कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है |साथ में फिर कहूँगा सीधे साधे शब्दों से सब कुछ संभव कर सकती है ज्योत्स्ना जी ,आपका अभिवादन |
kai bar chakha hai maine swad chandni ka har bar maine paya wo kuch aur hi alag tha .........,har badalte swad ka alag alag sapna tha chahe jo bhi tha swad par wo swad apna tha ............aapne hamari blog ko dekha sneh bnaye rakhe dhanyabad......sabhar(GURU JEE)
wooooohhhhhhhhhhh joytsna ji mai samjhta tha chand ko maine bahut najdik se dekha hai ... par app mujhse jayada najdik se dekha hai chand ko . tabhi to itna dub ke likhti hai app.. badhai chand se najdiki ke liye
30 comments:
bahut hee sundar, sach kahun to sheeershak padh kar hee lag gaya thaa ki kuchh khaas hogaa, apkee lekhanee aur blog apke parichay ne sabhee kuchh ne prabhaavit kiya.
एक बहुत ही सुन्दर एहसास! बहुत सुन्दर लिखा है।बधाई।
वाह जी वाह बहुत बेहतरीन लिखा है आपने
चाँद को चख के देख लेना ज़रा
अगर मीठा लगे
और चांदनी का दिल धडके
समझ लेना कि मैं हूँ
तुम्हारे पास
वाह जी वाह सहज भावों में बहुत बडी बात कह डाली आपने
आप सभी को बैसाखी पर्व दी लख लख बधाईयां
Chaand ko chakhna ....
Waah kya baat hai dost ji..,
Bahut behtarin jazbaat...
अरे वाह......चाँद को चखना और प्यार की मिठास को महसूस करना,
इसे कहते हैं ख्यालों की घाटी में लरजते ख्याल......
बहुत ही सुन्दर.बधाई...
jyotsnaji,aur sunder hota agar likhati-'Chand ko chupke se dekh lena jara; agar chandani shital lage" Phir bhi bahut sunder.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति , बधाई.
WAAH JI WAAH KYA KHUB KAHI AAPNE...PURE KE PURE KHAYAALAAT CHANDANI SE SARABOR KAR RAKHA HAI AAPNE.. BAHOT KHUB LIKHA HAI AAPNE..DHERO BADHAAYEE AAPKO
ARSH
अत्यन्त सुन्दर रचना है, ज्योत्सना जी।
वास्तव में आपका नाम आपके गुणों के अनुरूप ही है।
सुन्दर- शीतल- मनोहर- मनोरम- पावन................................
वाकई आप कितने विश्वास से इतनी बड़ी बात कह गईं कि " यकीन न हो तो साँसें ज़रा आहिस्ता लो मेरी साँसों को खुद की साँसों में घुला पाओगे" निश्छल प्रेम में ही ये संभव है.
- विजय
मोहब्बत का एहसास कराती रचना ...खूबसूरत है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सुन्दर कविता !!
बहुत दिनों बाद कोई अच्छी कविता पढने को मिली ,आम तौर पर हिंदी कविता में प्रेम के नाम पर कुंठा ,व्यक्तिवाद,स्त्री -पुरुष की जटिल मनस्थितियों को ही परोसा जा रहा है ,जिसकी वजह से प्रेम के अतिरिक्त और सब कुछ नजर आने लगता है और कविता भुला दी जाती है |लेकिन ज्योत्स्ना जी की कविता में ऐसा नहीं है |
चाँद को चख लेने की बात ,समर्पण का बेहद खुबसूरत पर्याय बन गयी है ऐसा लगता है जैसे एक एक शब्द को बेहद स्नेहिल ढंग से सज्जित कर उसे किसी नायिका की तरह तैयार किया गया है ,इतनी सुन्दर पंक्ति पढ़कर चांदनी का दिल न धड़कता हो तो भी धड़केगा ,और हाँ हवा में घुलता साँसों का घेरा कितनी तीव्रता से हर दिशा में dilute हो रहा है ,ये हम साफ़ देख रहे हैं |ये ज्योत्स्ना जी की लिखी अब तक की सबसे बेहतरीन कविता है ये कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है |साथ में फिर कहूँगा सीधे साधे शब्दों से सब कुछ संभव कर सकती है ज्योत्स्ना जी ,आपका अभिवादन |
बहुत खूब !
मनोभावों की बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति | एक प्रेममय कोमल एहसाश |
''मित्रता'' की पर्याय 'ज्योत्स्ना'' की निश्छल हृदय से स्पंदित आत्मविश्वास से परिपूर्ण शीतल उपस्थिति ...
Bahut Achi kavita hai...!
:)... jaanti hoon meri muskaan kaa arth aap samjh sakti hain
S-abhar
vartika
समर्पण को प्रदर्शित करती रचना एक सुखद ऐहसास जगाा जाती है
बहुत सुंदर और बहुत मीठी भी ....चखने पर कुछ ऐसा ही आभास हुआ !!
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!क्या कहना!
Oh! yeh aapne ek masterpiece likha hai......... yeh kavita dil ko chhoo gayi.......
ek ehsaas,
ek sundar ehsaas.
jazbaaton ko jhakjor diya hai,
is kavita ko jo bhi padega,
usme khud ko hi dekhega.......
kai bar chakha hai maine
swad chandni ka
har bar maine paya
wo kuch aur hi alag tha .........,har badalte swad ka
alag alag sapna tha
chahe jo bhi tha swad
par wo swad apna tha ............aapne hamari blog ko dekha sneh bnaye rakhe dhanyabad......sabhar(GURU JEE)
तुम्हारी सासों मेरे सासों की खुशबु आने लगे समजना की हम वही कही है...
wooooohhhhhhhhhhh joytsna ji mai samjhta tha chand ko maine bahut najdik se dekha hai ... par app mujhse jayada najdik se dekha hai chand ko . tabhi to itna dub ke likhti hai app.. badhai chand se najdiki ke liye
yam-yam-yam-yam......mazaa aa gayaa
chaand ke swaad kaa bhi....aur aapki kavita kaa bhi.....sach......!!
sundar kavita hae
जब कभी भी
रातों को तुम अकेले हो
कोई बेचैनी जब
करवटें बदलने लगे
चाँद को चख के देख लेना ज़रा
अगर मीठा लगे
और चांदनी का दिल धडके
समझ लेना कि मैं हूँ
तुम्हारे पास कहीं
यकीन न हो तो
साँसे ज़रा आहिस्ता लो
मेरी साँसों को
खुद कि साँसों में
घुला पाओगे
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naari ke prem ki aseem prakastha ko spars krti kvita .bilkul esa lga ki man ko chandni se nehla diya ho.bahut sundar .bahv seedhe dil me utar gye
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