Sunday, April 12, 2009

चाँद को चख के देख लेना ज़रा...

जब कभी भी

रातों को तुम अकेले हो

कोई बेचैनी जब

करवटें बदलने लगे

चाँद को चख के देख लेना ज़रा

अगर मीठा लगे

और चांदनी का दिल धडके

समझ लेना कि मैं हूँ

तुम्हारे पास कहीं

यकीन न हो तो

साँसे ज़रा आहिस्ता लो

मेरी साँसों को

खुद कि साँसों में

घुला पाओगे

30 comments:

अजय कुमार झा said...

bahut hee sundar, sach kahun to sheeershak padh kar hee lag gaya thaa ki kuchh khaas hogaa, apkee lekhanee aur blog apke parichay ne sabhee kuchh ne prabhaavit kiya.

परमजीत सिहँ बाली said...

एक बहुत ही सुन्दर एहसास! बहुत सुन्दर लिखा है।बधाई।

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जी वाह बहुत बेहतरीन लिखा है आपने

चाँद को चख के देख लेना ज़रा
अगर मीठा लगे
और चांदनी का दिल धडके
समझ लेना कि मैं हूँ
तुम्हारे पास

वाह जी वाह सहज भावों में बहुत बडी बात कह डाली आपने
आप सभी को बैसाखी पर्व दी लख लख बधाईयां

ρяєєтii said...

Chaand ko chakhna ....
Waah kya baat hai dost ji..,
Bahut behtarin jazbaat...

रश्मि प्रभा... said...

अरे वाह......चाँद को चखना और प्यार की मिठास को महसूस करना,
इसे कहते हैं ख्यालों की घाटी में लरजते ख्याल......

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत ही सुन्दर.बधाई...

R.B.Chaturvedi said...

jyotsnaji,aur sunder hota agar likhati-'Chand ko chupke se dekh lena jara; agar chandani shital lage" Phir bhi bahut sunder.

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति , बधाई.

"अर्श" said...

WAAH JI WAAH KYA KHUB KAHI AAPNE...PURE KE PURE KHAYAALAAT CHANDANI SE SARABOR KAR RAKHA HAI AAPNE.. BAHOT KHUB LIKHA HAI AAPNE..DHERO BADHAAYEE AAPKO


ARSH

डॉ. जय प्रकाश गुप्त said...

अत्यन्त सुन्दर रचना है, ज्योत्सना जी।
वास्तव में आपका नाम आपके गुणों के अनुरूप ही है।
सुन्दर- शीतल- मनोहर- मनोरम- पावन................................

विजय तिवारी " किसलय " said...

वाकई आप कितने विश्वास से इतनी बड़ी बात कह गईं कि " यकीन न हो तो साँसें ज़रा आहिस्ता लो मेरी साँसों को खुद की साँसों में घुला पाओगे" निश्छल प्रेम में ही ये संभव है.
- विजय

अनिल कान्त said...

मोहब्बत का एहसास कराती रचना ...खूबसूरत है

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

L.Goswami said...

सुन्दर कविता !!

Unknown said...

बहुत दिनों बाद कोई अच्छी कविता पढने को मिली ,आम तौर पर हिंदी कविता में प्रेम के नाम पर कुंठा ,व्यक्तिवाद,स्त्री -पुरुष की जटिल मनस्थितियों को ही परोसा जा रहा है ,जिसकी वजह से प्रेम के अतिरिक्त और सब कुछ नजर आने लगता है और कविता भुला दी जाती है |लेकिन ज्योत्स्ना जी की कविता में ऐसा नहीं है |
चाँद को चख लेने की बात ,समर्पण का बेहद खुबसूरत पर्याय बन गयी है ऐसा लगता है जैसे एक एक शब्द को बेहद स्नेहिल ढंग से सज्जित कर उसे किसी नायिका की तरह तैयार किया गया है ,इतनी सुन्दर पंक्ति पढ़कर चांदनी का दिल न धड़कता हो तो भी धड़केगा ,और हाँ हवा में घुलता साँसों का घेरा कितनी तीव्रता से हर दिशा में dilute हो रहा है ,ये हम साफ़ देख रहे हैं |ये ज्योत्स्ना जी की लिखी अब तक की सबसे बेहतरीन कविता है ये कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है |साथ में फिर कहूँगा सीधे साधे शब्दों से सब कुछ संभव कर सकती है ज्योत्स्ना जी ,आपका अभिवादन |

अमिताभ मीत said...

बहुत खूब !

संत शर्मा said...

मनोभावों की बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति | एक प्रेममय कोमल एहसाश |

anubhooti said...
This comment has been removed by the author.
anubhooti said...

''मित्रता'' की पर्याय 'ज्योत्स्ना'' की निश्छल हृदय से स्पंदित आत्मविश्वास से परिपूर्ण शीतल उपस्थिति ...

Meynur said...

Bahut Achi kavita hai...!

वर्तिका said...

:)... jaanti hoon meri muskaan kaa arth aap samjh sakti hain

S-abhar
vartika

manoj kumar said...

समर्पण को प्रदर्शित करती रचना एक सुखद ऐहसास जगाा जाती है

renu agarwal said...

बहुत सुंदर और बहुत मीठी भी ....चखने पर कुछ ऐसा ही आभास हुआ !!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!क्या कहना!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Oh! yeh aapne ek masterpiece likha hai......... yeh kavita dil ko chhoo gayi.......

ek ehsaas,
ek sundar ehsaas.
jazbaaton ko jhakjor diya hai,
is kavita ko jo bhi padega,
usme khud ko hi dekhega.......

GURU JEE SAYS said...

kai bar chakha hai maine
swad chandni ka
har bar maine paya
wo kuch aur hi alag tha .........,har badalte swad ka
alag alag sapna tha
chahe jo bhi tha swad
par wo swad apna tha ............aapne hamari blog ko dekha sneh bnaye rakhe dhanyabad......sabhar(GURU JEE)

નીતા કોટેચા said...

तुम्हारी सासों मेरे सासों की खुशबु आने लगे समजना की हम वही कही है...

Mai Aur Mera Saya said...

wooooohhhhhhhhhhh joytsna ji mai samjhta tha chand ko maine bahut najdik se dekha hai ... par app mujhse jayada najdik se dekha hai chand ko . tabhi to itna dub ke likhti hai app.. badhai chand se najdiki ke liye

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

yam-yam-yam-yam......mazaa aa gayaa
chaand ke swaad kaa bhi....aur aapki kavita kaa bhi.....sach......!!

खोरेन्द्र said...

sundar kavita hae

deep said...

जब कभी भी

रातों को तुम अकेले हो

कोई बेचैनी जब

करवटें बदलने लगे

चाँद को चख के देख लेना ज़रा

अगर मीठा लगे

और चांदनी का दिल धडके

समझ लेना कि मैं हूँ

तुम्हारे पास कहीं

यकीन न हो तो

साँसे ज़रा आहिस्ता लो

मेरी साँसों को

खुद कि साँसों में

घुला पाओगे

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naari ke prem ki aseem prakastha ko spars krti kvita .bilkul esa lga ki man ko chandni se nehla diya ho.bahut sundar .bahv seedhe dil me utar gye

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