वो आता है-
मेरी आँखों की खिड़कियों से झाँकता है,
चला जाता है--
उन खिड़कियों पर
छोड़ जाता है
कुछ चीज़ें----
दो प्यार भरी आँखें,
एक मुस्कान,
एक चेक की शर्ट,
उसके दो खुले बटन,
वहाँ से झाँकती चौंडी छाती,
एक भीनी खुशबू,
बाँहों के घेरे,
एक कसक में लिपटी मीठी तड़प----
और भी कुछ--
जो मैं सब से बाँटना नही चाहती,
तभी तो छुपा के रखती हूँ,
दिल के तहख़ाने में...
24 comments:
Khubsurat, isse kam kuch nahi kaha ja sakta.
वो आता है-
मेरी आँखों की खिड़कियों से झाँकता है,
bahut hi khubsurat abhivyakti....!
ज्योत्स्ना जी,
"दिल के तहखाने में" एक ऐसी श्रांगारिक रचना है जिसमें नारी मन में प्रेम से उपजे सहज भावों का रेखाचित्र खींचा गया है.
यह ऐसा अहसास है जो किसी अपने के ओझल होने के बाद भी काफी समय तक तन-मन को उद्वेलित करता रहता है.
वाकई इसे बाँटना आसान नहीं होता , तब तो कवि द्बारा प्रासंगिक लिख गया है कि --
जो मैं सब से बाँटना नहीं चाहती,
तभी तो छुपा के रखती हूँ,
दिल के तहखाने में... - विजय
खूबसूरत लिखा है आपने...
bahut sundar likha hai ...bahut achchha laga padhkar
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
जो मैं सब से बाँटना नहीं चाहती,
तभी तो छुपा के रखती हूँ,
boht sunder shabdo me dil ki baat kahi aapne....
behad khubsurat jazbaat likhe hai.bahut badhai.
जाने क्यों मुझे अपना एक पसंदीदा गीत याद आ गया ...लता की आवाज में ....मुझे घेर लेंगे निगाहों के साए ..ये दिल ओर की निगाहों के साये .....
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : आपकी चिठ्ठा : मेरी चिठ्ठी चर्चा में
जी बहुत सुन्दर लिखा आपने .............
बहुत ही आत्मीय संस्मरण है। स्वर्णिम यादें ! आपकी लेखन शैली के क्या कहने......
सच कहा आपने ..हर अनुभव बताने के लिए नही होता ..सुन्दर रचना
बहुत ही मोहक रूमानियत लिए आयी है ये रचना ...
ऐसा दिली तहखाना सभी को नसीब हो ,आमीन !!!!!
इतने कोमल एहसास हैं जिए जाते हैं.......
वो शब्दों की खन -खन
वो भावों की रुन झुन
वो बातों ही बातों में दिल तक पहुंचना
वो चाँद का चखना ,चांदनी का दिल धडकना
वो दस्तक वो दौड़ वो दर्पण वो बोल
वो नारी का मन ,वो दीदी की कहन
दिसम्बर की रातें ,पापा की बातें
वो आकाश में उड़ना ,खुद से बहलना
अगर सुन रहे हो ,अगर गुन रहे हो
तो समझ लो कहीं से ज्योत्स्ना आ रही है
हमारे लिए भी ,तुम्हारे लिए भी ,सभी के लिए उसकी झोली भरी है
गीतों का गुलदस्ता संग ला रही है
Aapki lekhani se bhav-ganga ka pravah yun hi anwarat bana rahe
Chandan
उत्कृष्ट रचना... भविष्य में भी ऐसी कविता का इन्तेज़ार रहेगा...
ज्योत्सना जी,
मैंने आपकी सारी कविता पढ़ी, बहुत अच्छा लगा, लेकिन "आँसू" पढ़ कर कुछ कहने को व्याकुल हो गयी.
"मैं तुम्हारे सुख और दुःख
दोनों का साथी हूँ.
तुम्हारी आँख का आंसू!"
मानना पड़ेगा की भाव में जितनी गहरायी है, अभिव्यक्ति में भी उतनी ही सार्थकता है. शब्द अत्यंत सुंदर ढंग से सजाये गए हैं. आपकी आखों के "आँसू" हमारी आखों से ह्रदय की गहराई तक पहुच गए हैं.
"दिल के तहखाने " उन मनोभावों की अभिव्यक्ति है जो लेखनी के माध्यम से कुछ कह रही है, जिसे हर कोई महसूस तो करता है पर कहने का साहस नहीं जुटा पाता .
bahuuuuuuuuuut khoobsurat.
ज्योतसना जी,
दिल के तहखाने में आपकी ख्ुबसुरत प्रस्तुती है ।
sach ise padkar kahi kho jane ko hota hai man
bahut hi sundar abhivyakti hae
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