Saturday, April 25, 2009

दिल के तहखाने में....

वो आता है-
मेरी आँखों की खिड़कियों से झाँकता है,
चला जाता है--


उन खिड़कियों पर
छोड़ जाता है
कुछ चीज़ें----
दो प्यार भरी आँखें,

एक मुस्कान,
एक चेक की शर्ट,
उसके दो खुले बटन,
वहाँ से झाँकती चौंडी छाती,
एक भीनी खुशबू,
बाँहों के घेरे,
एक कसक में लिपटी मीठी तड़प----


और भी कुछ--
जो मैं सब से बाँटना नही चाहती,
तभी तो छुपा के रखती हूँ,
दिल के तहख़ाने में...

24 comments:

संत शर्मा said...

Khubsurat, isse kam kuch nahi kaha ja sakta.

ρяєєтii said...

वो आता है-
मेरी आँखों की खिड़कियों से झाँकता है,

bahut hi khubsurat abhivyakti....!

विजय तिवारी " किसलय " said...

ज्योत्स्ना जी,
"दिल के तहखाने में" एक ऐसी श्रांगारिक रचना है जिसमें नारी मन में प्रेम से उपजे सहज भावों का रेखाचित्र खींचा गया है.
यह ऐसा अहसास है जो किसी अपने के ओझल होने के बाद भी काफी समय तक तन-मन को उद्वेलित करता रहता है.
वाकई इसे बाँटना आसान नहीं होता , तब तो कवि द्बारा प्रासंगिक लिख गया है कि --

जो मैं सब से बाँटना नहीं चाहती,
तभी तो छुपा के रखती हूँ,
दिल के तहखाने में...
- विजय

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

खूबसूरत लिखा है आपने...

अनिल कान्त said...

bahut sundar likha hai ...bahut achchha laga padhkar

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

डिम्पल मल्होत्रा said...

जो मैं सब से बाँटना नहीं चाहती,
तभी तो छुपा के रखती हूँ,
boht sunder shabdo me dil ki baat kahi aapne....

mehek said...

behad khubsurat jazbaat likhe hai.bahut badhai.

डॉ .अनुराग said...

जाने क्यों मुझे अपना एक पसंदीदा गीत याद आ गया ...लता की आवाज में ....मुझे घेर लेंगे निगाहों के साए ..ये दिल ओर की निगाहों के साये .....

समयचक्र said...

समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : आपकी चिठ्ठा : मेरी चिठ्ठी चर्चा में

AAKASH RAJ said...

जी बहुत सुन्दर लिखा आपने .............

VIJAY VERMA said...

बहुत ही आत्मीय संस्मरण है। स्वर्णिम यादें ! आपकी लेखन शैली के क्या कहने......

L.Goswami said...

सच कहा आपने ..हर अनुभव बताने के लिए नही होता ..सुन्दर रचना

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...
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डाॅ रामजी गिरि said...

बहुत ही मोहक रूमानियत लिए आयी है ये रचना ...

ऐसा दिली तहखाना सभी को नसीब हो ,आमीन !!!!!

रश्मि प्रभा... said...

इतने कोमल एहसास हैं जिए जाते हैं.......

Unknown said...

वो शब्दों की खन -खन
वो भावों की रुन झुन
वो बातों ही बातों में दिल तक पहुंचना
वो चाँद का चखना ,चांदनी का दिल धडकना
वो दस्तक वो दौड़ वो दर्पण वो बोल
वो नारी का मन ,वो दीदी की कहन
दिसम्बर की रातें ,पापा की बातें
वो आकाश में उड़ना ,खुद से बहलना
अगर सुन रहे हो ,अगर गुन रहे हो
तो समझ लो कहीं से ज्योत्स्ना आ रही है
हमारे लिए भी ,तुम्हारे लिए भी ,सभी के लिए उसकी झोली भरी है
गीतों का गुलदस्ता संग ला रही है

admin said...

Aapki lekhani se bhav-ganga ka pravah yun hi anwarat bana rahe

Chandan

शशि रंजन मिश्र said...

उत्कृष्ट रचना... भविष्य में भी ऐसी कविता का इन्तेज़ार रहेगा...

Kiran Sindhu said...

ज्योत्सना जी,
मैंने आपकी सारी कविता पढ़ी, बहुत अच्छा लगा, लेकिन "आँसू" पढ़ कर कुछ कहने को व्याकुल हो गयी.

"मैं तुम्हारे सुख और दुःख
दोनों का साथी हूँ.
तुम्हारी आँख का आंसू!"

मानना पड़ेगा की भाव में जितनी गहरायी है, अभिव्यक्ति में भी उतनी ही सार्थकता है. शब्द अत्यंत सुंदर ढंग से सजाये गए हैं. आपकी आखों के "आँसू" हमारी आखों से ह्रदय की गहराई तक पहुच गए हैं.

anubhooti said...

"दिल के तहखाने " उन मनोभावों की अभिव्यक्ति है जो लेखनी के माध्यम से कुछ कह रही है, जिसे हर कोई महसूस तो करता है पर कहने का साहस नहीं जुटा पाता .

रवीन्द्र दास said...

bahuuuuuuuuuut khoobsurat.

Brajendra Kumar Gupta said...

ज्‍योतसना जी,
दिल के तहखाने में आपकी ख्‍ुबसुरत प्रस्‍तुती है ।

Mai Aur Mera Saya said...

sach ise padkar kahi kho jane ko hota hai man

खोरेन्द्र said...

bahut hi sundar abhivyakti hae

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