Sunday, May 10, 2009

'निःशब्द'

कुछ विचलित करते प्रश्न,
मुझे कर जाते हैं निःशब्द .
मनन हो जाता तब मौन,
मैं शांत और स्तब्ध.

ढूंढती रहती सतत् वो शब्द,
कि जो उत्तर बन जायें.
पर स्पंदित निःशब्द,
मेरे होठों तक आये.

अनुत्तरित प्रश्नों का रख मान,
मेरे होठों पर रख कुछ शब्द.
स्वयं उत्तर करता उपलब्ध,
धड़कता रहा सदा-"निःशब्द".

20 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

ढूंढती रहती सतत् वो शब्द,
कि जो उत्तर बन जायें.
पर स्पंदित निःशब्द,
मेरे होठों तक आये.

बहुत ही सुंदर शब्‍द दिए हैं आपने

रावेंद्रकुमार रवि said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति!

PREETI BARTHWAL said...

ढूंढती रहती सतत् वो शब्द,
कि जो उत्तर बन जायें.
पर स्पंदित निःशब्द,
मेरे होठों तक आये.
बहुत खूब, बधाई।

ρяєєтii said...

इस् निःशब्द पर हम निःशब्द है ...

निःशब्द रचना पर बधाई स्वीकारे ...

anurag said...

होठों का अनुत्तरित रहना ही तो उनका उत्तर है. बहुत अच्छी रचना

Udan Tashtari said...

सुन्दर और कोमल अभिव्यक्ति!

Himanshu Pandey said...

मुझे तो लुभाया शुरुआती पंक्तियों ने ही । निःशब्द होने पर मौन मनन की गहराइयों में पहुँच जाता है, इससे खूबसूरत उद्भावना पूरी कविता में दुर्लभ है । आभार ।

નીતા કોટેચા said...

धड़कता रहा सदा-"निःशब्द".

बहोत बढिया कहा ये तो..
निःशब्द जब धड़कता है ...

निर्मला कपिला said...

िअपके व्यक्तित्व की तरह ही सुन्दर अभिव्यक्ती

अलीम आज़मी said...

no words to be appreciate u....jyotsana ji....bahut umda rachna aapki

डॉ .अनुराग said...

अद्भुत......अद्भुत...

रश्मि प्रभा... said...

मुझे कर दिया निःशब्द......

विजय तिवारी " किसलय " said...

ज्योत्स्ना जी
तीन अंतरे के "निःशब्द " ने उन प्रश्नों पर चिंतन के लिए मजबूर कर दिया , हम जिनके उत्तर में निःशब्द हो जाते हैं. आज भी जीवन में ऐसे कई क्षण आते हैं जब हम या तो मौन हो जाते हैं या फिर जानते -समझते हुए भी कुछ कह पाने में असमर्थ रहते हैं.... हम कहते हैं न कि बात मुँह तक आई और कह नहीं पाए.
कभी कभी ऐसा भी होता है कि हमें जब कहना होता है तब हम कुछ कह नहीं पाते और अवसर निकलने पर निरर्थक समझ कर हम उन्हें जबान पर ही नहीं लाते.
ऐसी सारी परिस्थितियों में इस " निःशब्द " का धड़कना मानसिक उथल-पुथल का ही परिचायक होता है.
इस छोटी सी रचना ने हृदय को तरंगित कर दिया ,
आप ऐसे ही साहित्य सृजन में लगी रहें
हम भी आपकी भावनाओं और विचारों से विग्य होते रहें.

Brajendra Kumar Gupta said...

आदरणीया ज्‍योत्‍स्‍ना जी,
आपकी नि:शब्‍द रचना पढी । जो मुझे नि:शब्‍द कर दी है । आपकी प्रस्‍तुती अत्‍यन्‍त ही सराहनीय है । बधाई स्‍वीकार करे ।

masoomshayer said...

akhree band bahut hee khoobsoorta hai pooree kavita ko adhaar deta huya

संत शर्मा said...

ढूंढती रहती सतत् वो शब्द,
कि जो उत्तर बन जायें.
पर स्पंदित निःशब्द,
मेरे होठों तक आये |

Bakai kuch prashno ke uttar ki talash nihshabd kar jate hai iinsan ko, aur maun hi sahaj aur behtar vikalp nazar aata hai. Ek achchi aur sachchi avivyaqti.

उम्मीद said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति!

admin said...

इस नि:शब्द के लिए शब्द
आसां नहीं ढूढ़ना

वर्तिका said...

सुंदर रचना दी.... आपका कुछ तुकांत पहले शायद नहीं पढा मैंने... सो ये रचना एक surprise sort thi.... :)

ramji said...

हम जिन प्रश्नों को करते हल

हल ही बन जाते है प्रश्न

प्रश्न और हल का अविरल खेल

जगत का बनता जीवन स्वप्न

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