दिल की सुर्ख गलियों में ,
वो आज भी
धड़कता है ---
बंद आँखों में,
तस्वीर सा उभरता है ---
उसकी बातों की वो,
मीठी सी महक ......
.दर्द देने का हुनर भी
खुदा ने बख्शा है ----
उसके हाथों की पकड़ ,
यादों को ,
जकड़ लेती हैं ---
फिर भी --
ये सच है कि -
उससे कोई रिश्ता नहीं ...............
26 comments:
us se koi rishta nahi...
kya sachmuch aisa hi hai
phir Eak shaandaar rachana ke liye dhanyawad va badhai
कम शब्दों में सुन्दर कविता....
bahot badhiya..jaise dil ki bat khud b khud kalam ne likh dali aur hame pata bhi na chala..
उसके हाथों की पकड़ ,
यादों को ,
जकड़ लेती हैं ---
बहुत खूब -- सुन्दर भाव
दिल की सुर्ख गलियों में ,वो आज भी धड़कता है ,
मीठी महक बन, आज भी महकता है ..
कैसे कहती हो की रिश्ता नहीं,
दर्द का जो रिश्ता है कोई कम तो नहीं ...
बहुत उम्दा और सुन्दर भाव!!
कुछ रिश्ते दिल की गहराइयों में जीते हैं अनाम से...
इससे खूबसूरत एहसास और क्या होंगे !
avykt rishte hi to apne hote hai .
bhut sundar ahsas.
सुन्दर कविता
वीनस केसरी
Kya baat hai Jyotsna Ji. Bahut khoob andar tak jhakjhod diya. Sach likhne ka andaaz bahut alag hai...
Badhai.
--Gaurav
सहज पंक्तियों में सुन्दर भाव । धन्यवाद ।
आपकी लेखनी से उपजी सशक्त कविताओं से थोड़ी मद्धिम है यह कविता ।
bahut hi sundar abhivyakti!!!!
Kuch yaade rishte ka roop nahi le pati per unki ahmiyat jivan prayant mahsush hoti hai, romanchit kar jati hai. Khubsurat abhivyaqti.
दिल को छूने वाली प्यारी सी रचना
आप ही लिख सकती हैं इतनी सहजता से ऐसे गहरे अनुभव.... कुछ रिश्ते श्यायद ऐसे ही होते हैं... नामों के बंधन में बाँधने की कोशिश करें तो अपना अस्तित्व ही खो दें.... पर नाम दिल कहाँ ढूंढता है....रिश्तों के नाम तो समाज ढूँढता है....
ज्योत्स्ना जी,
बिन रिश्ते के
सपनों में दिखता है.
बातों में मिठास
रखता है.
यादों को अपने
हाथों से पकड़ता है
आप को रिश्ता नहीं तो,
और क्या लगता है?
मुझे तो कम से कम
अपनेपन का स्पन्दित
रिश्ता लगता है.
-विजय
सुन्दर कविता
ji wa wah kay baat hai
उसकी बातों की वो,
मीठी सी महक ......
.दर्द देने का हुनर भी
खुदा ने बख्शा है ----
aapki rachna ki punch line..
bahut koobsoorat tarike se baandhaa he shbdo ko,
badhai
उसके हाथों की पकड़ ,
यादों को ,
जकड़ लेती हैं ---
फिर भी --
ये सच है कि -
उससे कोई रिश्ता नहीं ............... बहुत गहरे भाव जो मन को छू गई..आपकी हर रचना भावपूर्ण होती है!!!!!! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.....
wah.. bahut pyari kavita..
bahut khub koi rishta nahi.....
Ye rishton ki dor hai
Jiski na koi chor hai,
Kuch rishte aisa bhi hain|
Labzon ki swachchandh dhaara ne
Nikal padhi moti ki ladiyaan,
Zazbon ne kalam ko di awaaz,
kalaam ne unhe piroyaa|
Bahut khub likha hai aapne
har kavita me aapne ba khub likha hai.
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zindagi itni tanha nahi ki sahaara bin guzar na ho.
Ye aisi kayaanat hai jahaan kuch na hoke sab kuch milta hai||
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ISHQ KARNE WAALE ULJHTE HAIN MUHABBATON KI DOR ME KUCH IS TARAH,
K ULJHAN NA SULAJH KAR ULJHAN BAN K REH GAYI HO FIR JIS TARAH|
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ZAZBON KI SACHCHAAYI LAFZON ME BOLNE LAGTI HAI,
DILME CHUPE HUAY RAAZON KO KHOLNE LAGTI HAI|
DIL K PARDE PAR ARMAAN-E-MUHABBAT KO LE KAR,
ZINDAGI BHI KAISE KAISE RANG BHARNE LAGTI HAI|
JAAREE RAKE SAFAR BADHAIYA
shandaar kavitaa hae
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