मैंने अपने नन्हे-नन्हे
हाथ पैरों को फैलाया
और अंगड़ाई लेकर मेरा
किशोर वय बाहर आया-
एक प्रश्न तब भी
कुलबुलाता था..........
और आज भी
सर उठता है----
आखिर.........
मैंने माँ से पूंछ ही लिया ---
"माँ! ये दुनिया कितनी बड़ी है ?"
माँ ने मेरा माथा चूमा,
सिर को गोद में रख लिया,
और बोली- बस! मेरे आँचल से,
थोड़ी-सी छोटी है........
22 comments:
सिर्फ कविता नहीं है ,ऐसा लगा इसे पढ़कर जैसे माँ की गोद में सर छुपाये बैठा हूँ
माँ ने मेरा माथा चूमा,
सिर को गोद में रख लिया,
और बोली- बस! मेरे आँचल से,
थोड़ी-सी छोटी है...
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
भाव पूर्ण अभिव्यक्ति!
Sundar Abhivyaqti
सुंदर रचना के लिए आभार!
महावीर बी सेमलानी
आह..दिल झूम उठा..सच कहा..शुक्रिया
बेहद सुन्दर व भावपूर्ण रचना लगी , माँ की याद आ गयी जैसे ।
masoom sawaal, vistrit jawaab......pyaar kitni bariki se arth batata hai
"माँ के आँचल से विस्तृत कुछ और हो ही नहीं सकता "
MA KI YAD AA GAI
SHEKHAR KUMAWAT
Kuchh hi din pahleki baat hai..maine aisehi apni maa ki godme sar rakha aur na jane kaise neend lag gayi...itni gahari ki, ek ghante baad hosh aaya...aapki kavitane wo lamhen yaad dila diye..
पढ़कर माँ की याद आ गई ... बढ़िया रचना प्रस्तुति ... आभार
अदभुत भावभरी अभिव्यक्ति ! रचना का आभार ।
माँ के आँचल से विस्तृत कुछ और हो ही नहीं सकता "
undar rachna
maa ke anchal ka duniya se kya lena
dena chahti hain hain har khushi maa apne baccho ko
duniya to hain bus bus kuch pal ki raina
sunder lekhan...sunder abhivkti
bahut sundar
bahut sunder kavita.
अद्भुत ।
BAHUT KHOOB
chhiti si kavita men kitna kuchh ...
aabhaar
shubh kamnayen
bahut hi sunder.
अद्भुत! अद्भुत!
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