Sunday, May 16, 2010

***हर शय में था***

प्रस्तुत पंक्तियों की प्रेरणा किसी को हुक्का पीते देख कर मिली...
.हुक्के को पीते समय जो आवाज़ आती है ऐसा लगता है-----णाम..फिर जब ठहर जाते हैं तो आवाज़ कुछ ऐसी होती है ---णानक...और जब छोड़ते हैं तो........हू.


मंदिर, मस्जिद,गुरुद्वारा
रही ढूँढती मैं हर सूँ
छिपा राम में, या नानक में,
याकि है तू अल्ला हू

जब देखा तो हर शय में था
हुक्के की गुड़ गुड में तू था
खींचा राम था,ठहरा नानक
और छोडा तो अल्ला हू था .

25 comments:

shama said...

Kya baat hai!

kshama said...

Zindagi jeene ka tareeqa bayan kar diya aapne!

Deepak Shukla said...

Hi..

Chahun or Eshwar hai sabke..
Jagat ke har Kan kan main hai..
Aati jaati sans main wo hai..
Sabke hi tan-man main hai..

Sundar kavita..
Now I m also following ur blog..

Pl mere blog par bhi visit karen..

www.deepakjyoti.blogspot.com

DEEPAK..

36solutions said...

कण कण में राम समाया.

समयचक्र said...

हुक्का जब लोगबाग पीते है तो उसको मै भी गौर से देखता हूँ ... हुक्के की गुड़ गुड़ की आवाज के क्या कहने ...मुझे तो अजूबा लगता है जबकि मै बीडी सिगरेट हुक्का भी नहीं छूता हूँ ... हुक्के को लेकर आपकी रचना बढ़िया रही.... बधाई

दिलीप said...

ek noor te sab jag upja kaun bhale kaun mande...bahur sundar baat kahi

Dev said...

जहाँ ध्यान वहीँ भगवान .....

Unknown said...

wah choda TO ALLAH HU THAA
KYAYUKTI SEKAVITA KO LAY DI HAI ...BILKUL SAHAJ V PRABHAVI ....AAJ KE SAMAY KI JARURAT HAI AISI KAVITAYEN BHAVNA BAHUT SHRESTH V SAMSAAMYIK ..JYOTSNA AAKHIRI PADHYABAHUT HI UMDAA HAI

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा विचार!!

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

wah kya andaze byan hai zindgi ka..lajawab..badhiya rchna

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi achhi rachna hai

S R Bharti said...

आपकी कविताओं ऐसा सुंदर तथा रोचक रूप देख कर मन अत्यंत प्रभावित हो गया
सार्थक भाव , हार्दिक बधाई

nilesh mathur said...

वाह! कमाल की पंक्तियाँ है!

Anonymous said...

"खींचा राम था,ठहरा नानक
और छोडा तो अल्ला हू था."
कहाँ से कहाँ - यही होता है कवि मन और ऐसे ही उपजती है कविता - आभार

डाॅ रामजी गिरि said...

बहुत ही विहंगम दर्शन उपस्थित किया है आपने तो...

साधुवाद...

prithwipal rawat said...

bahut khoob!!!!

अरुणेश मिश्र said...

ध्वनि विज्ञान की आपने सम्पदा बढा दी । हुक्के की गुड़गुड़ात्मकता को रचना ने नयी अर्थवत्ता दी ।
बधाई ।

Razi Shahab said...

waah....nice poetry

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर पंक्तियाँ.....


परिचय में....

मैं व्यथा हूँ हृदय की
प्रत्येक सहृदय की
करुना भी मेरा नाम
कल्पित हृदय का दाह
कचोटता क्यों मन को?
दे नही सकती शीतलता
तो हे देव!
ज्योत्स्ना क्यों मेरा नाम?


यह सम्पूर्ण कविता बहुत ही अच्छी लगी.... दिल को छू गई....

Dr.R.Ramkumar said...

हुक्के को पीते समय जो आवाज़ आती है ऐसा लगता है-----णाम..फिर जब ठहर जाते हैं तो आवाज़ कुछ ऐसी होती है ---णानक...और जब छोड़ते हैं तो........हू.


यह आवजवैशन बहुत अच्छा लगा..ध्वनि की साधना..
आपने फणीश्वरनाथ रेणु जी की स्मृति दिला दी..

Unknown said...

this is my heart full *& you r a verry good .....................

Sumit Pratap Singh said...

नयी सोच और बढ़िया रचना...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

are jyotsnaa.........are...are...are....ye kyaa kah diya tumne.....bhyi mazaa aa gayaa apan ko....!!!

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

bahut badhiya ..badhayee

ramji said...

हुक्का क्यों गुड गुड करता

कहता कि अंतस में भर लो

गुड कि दूनी गुडगुड मिठास

ये दुनिया एक चौपाल ,

सभी से करो एक ब्यावोहार

सभी का चाहो वैरी गुड

भर दो दुनया में सुविचार

बचन में गुड सा भरो मिठास

हुक्का सबसे प्रेम जताता चौपालों में ,

प्रेमी जनो कि नित्य नई महफिले सजाता ,,

IndiBlogger.com

 

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

BuzzerHut.com

Promote Your Blog