कब तक अवगुंठित रहूँ
जीवन या जीवन-क्षरण में?
मैंने तो न देर की प्रिय!
आपके शुभ संवरण में......
प्रेम वर्षा से प्रिय तुम
आज अंतस सिक्त कर दो,
संग रहना तुम सदा ही
प्रेम के इस आचरण में.......
मैंने तो न देर की प्रिय!
आपके शुभ संवरण में.....
रात्रि की निस्तब्धता में
तार मन के जुड गए
लौ लगी तुमसे रही प्रिय!
आत्म के निज जागरण में.......
मैंने तो न देर की प्रिय!
आपके शुभ संवरण में......
शून्य की अनुभूति पाऊँ
इतना तुम स्वछन्द कर दो,
हूँ चिर प्रतीक्षारत युगों से
देह के इस आवरण में........
मैंने तो न देर की प्रिय!
आपके शुभ संवरण में........
तेरा अलौकिक रूप देखूं
बंद आँखों से मनोहर
करबद्ध हूँ अब ले चलो
सानिध्य के वातावरण में........
मैंने तो न देर की प्रिय!
आपके शुभ संवरण में........
44 comments:
Hi...
Sundar bhavnatmak kavita, vishudhdh Jyotsna ji ki shaili main...
Deepak...
बहुत मनभावन आग्रह है प्रिय के लिए। ऐसे स्नेहयुक्त आग्रह के बाद प्रिय कैसे रुक सकते हैं। वे तो आते ही होंगे। शुभकामनाएं।
उम्दा रचना...!!
श्रृंगार रस से भरपूर मनभावन रचना........:)
निमंत्रण: हमरे ब्लॉग पे आने का.........:P
बेहतरीन उत्कृष्ट भावपूर्ण रचना!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....भावना प्रधान कविता....
संवरण ..........शब्द का अर्थ ?..
अकसर मैंने इसको रोकने के रूप में ही सुना है...
जैसे लोभ संवरण नहीं कर पाना ....
इस लिए जानना चाहती हूँ कि यहाँ किस अर्थ में प्रयोग किया गया है .
प्रेम और आराधना के बीच के दूरी मिटाती है आपकी रचना..
इस तरह की शानदार भाषा के साथ अब गीत कहां पढ़ने को मिलते हैं।
कई पुराने गीतकार याद आ गए।
अच्छा लगा।
उम्दा रचना
शुभकामनाएं
आपके ब्लाग की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर
सुन्दर अभिव्यक्ति!
संगीता जी,
आपका कथन बिलकुल सही है कि "संवरण" का अर्थ -----
"मनोवेग आदि को दबा या रोककर वश में रखना। नियंत्रण से बाहर न होने देना। निग्रह। जैसे—क्रोध या लोभ का संवरण करना। "
किन्तु मेरे द्वारा इसका प्रयोग ----------
" कन्या का विवाह के लिए अपना पति या वर चुनना।" इस अर्थ के साथ किया गया है ....
आपने मेरी रचना को इतने ध्यान से पढ़ा | धन्यवाद |
priya ko samarpit bhawnayen bahut achhi lagi
बेहतरीन रचना, कविता के मूल भावों में बहते सटीक शव्दों का प्रयोग. शब्द कठिन होते हुए भी उनके अर्थ सरल व अनुभूति में डुबोते हुए हैं.
धन्यवाद.
ज्योत्सना जी आपने संवरण को बिलकुल सही अर्थ में प्रयुक्त किया है। उसका अर्थ है चयन।
jyotsna ji,
araadhya dev ke prati prem ki komal aur manbhaawan abhivyakti. bahut sundar rachna, badhai sweekaren.
वाह, वाकई शानदार
vivj2000.blogspot.com
sundar geet....man ko choo lene vala. subhkamanaa isi tarah ke achchhe lekhan ke liye.
रात्रि की निस्तब्धता में
तार मन के जुड गए
लौ लगी तुमसे रही प्रिय!
आत्म के निज जागरण में.......
wah wah .. kya baat hai..
गेयता से परिपूर्ण उत्तम रचना - बधाई
देर तो मैने न की प्रिय !
आपके शुभ संवरण मे ।
प्रशंसनीय ।
इश्के हकीकी की शुरूआत सी लगती है यह प्रतीक्षा।
................
अपने ब्लॉग पर 8-10 विजि़टर्स हमेशा ऑनलाइन पाएँ।
sudar bhaav ......
sudar bhaav ......
संवरण का अर्थ निग्रह, आवरण और आच्छादन भी होता है। निग्रह या लोभ पर आवरण डालना उसे रोकने-दबाने का ही बोध कराता है। बहाना, छद्मवेश, बहाना करना, घेरा, बन्द करना, गुप्त भेद, बांध, चुनना, पसंद करना, पति चुनना आदि भी संवरण के अन्य अर्थ हैं। ढक्कन, समझ, संपीडन, संयम, अनुभूति, संकोचन, सेतु, पुल, बांध, एक प्रकार का हरिण, जल, बौद्धों का एक अनुष्ठान, सहनशीलता, आत्म नियंत्रण, कर्मों का प्रवाह रोकना, बाह्य जगत को अपने से अलग रखना के अर्थ में संवर शब्द काम लेते हैं। संवर या शंबर एक राक्षस का नाम है। जिसमें रोकने की शक्ति हो उसे संवरणशील कहते हैं। दिन का हिसाब करते समय बची हुई रकम यानी रोकड़ बाकी को संवरण शेष और दिन के बचे माल को संवरण स्कन्ध कहा जाता है। छिपाने- ढकने योग्य, गुप्त रखने योग्य, विवाह के लिए वरण करने योग्य को संवरणीय कहते हैं। अपने लिए (छीन झपटकर) बटोरना, भक्षण करना, गुणन या गुणनफल के अर्थ में संवर्ग शब्द काम लेते हैं।
ज्योत्सना जी,
आपके स्पष्टीकरण के लिए आभार...
@ राजेश जी ,
आपका भी आभार..
@@ आवेश,
इतने विस्तार से बताने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
shunya ki anubhuti paun, itna tum swachhanda kar do...
waah! kya baat keh di...
sundar rachna
हूँ चिर प्रतीक्षारत युगों से
देह के इस आवरण में
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ... उत्तम रचना ! बहुत अच्छा लगा पढ़कर ...
अनुपम रचना...बधाई...
नीरज
beautiful feelings!
शून्य की अनुभूति पाऊँ
इतना तुम स्वछन्द कर दो,
हूँ चिर प्रतीक्षारत युगों से
देह के इस आवरण में.......
श्रांगार की बूँदें भिगो रही हैं अंतस तक इस मन को ...
कब तक अवगुंठित रहूँ
जीवन या जीवन-क्षरण में?
मैंने तो न देर की प्रिय!
आपके शुभ संवरण में......
रात्रि की निस्तब्धता में
तार मन के जुड गए
लौ लगी तुमसे रही प्रिय!
आत्म के निज जागरण में.......
शून्य की अनुभूति पाऊँ
इतना तुम स्वछन्द कर दो,
हूँ चिर प्रतीक्षारत युगों से
देह के इस आवरण में........
तेरा अलौकिक रूप देखूं
बंद आँखों से मनोहर
करबद्ध हूँ अब ले चलो
सानिध्य के वातावरण में........
jYASNA G ,
aapki shbd sadhna stutya hai...matra ka jitna sundar kale aur niyantran aapne kiya hai wah kam dekhne milta hai..
Ullekhneeya hai aapka vichhar par adhikar aapki bhavnatmak gati mein kahi yati nahi hai---nirantarta hai, pranay ka dharasvar prawah hai...
Aanewale dinopn mein hindi lipi mein tippaniyan kar sakoonga eisi aashaa hai, yadi aap approce karne mein khushi mahsoos kar sakein to...
ज्योत्सना जी बहुत दिनों के बाद कोई शानदार श्रृंगारिक रचना पढने को मिली। सचमुच मन प्रसन्न हो गया।
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पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
achchi rachna likhi hai..... nice...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....भावना प्रधान कविता....
bahut sundar geet
wah.........sundar rachna
बहुत सुन्दर!!
bahut hi vinaypurn agrah bhala priy ise kaise thukra sakte hain.
poonam
WAAH WAAH
KYA KHOOB , YE RACHNA , SIRF APNE PREMI KE LIYE HI NAHI APITU BHAGWAAN KE LIYE BHI HAI ,,.. MUJHE TO PADHTE HUE AISA HI LAGA.....
AAPKO BADHAI.
VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
bahut sundar rachna,
कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
बहुत सुन्दर कविता लिखी आपने.... खूबसूरत अभिव्यक्ति.
श्री कृष्ण-जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
मन बोल उठा सुनकर पुकार
कवि ऋणी नहीं अपवादों का
जो करते हर फन में सुराग
मन ब्यथित हुआ अंतर स्वर से
बह गए अश्रु बन शब्द राग
काली गहराती रातों में जब
निद्रा ने आगोश भरा , बिरहिन की सूनी सेजों पे
जब अंगारों ने नृत्य किया , बिरहिन के आंशू बरस परे ,
तब कवि जी ने निज कविता से भावों की मधुर बरसात किया
उस एकाकी सूनी रैना में बरसा ,कविता से रस दुलार ........
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