दिल में रहा करते थे पहले प्यार की तरह.
जेहन में पड़ गए हो अब दरार की तरह..
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह.....
मांगी नहीं थीं नेमतें तुमसे ज़माने की
तुमने निभाया साथ भी व्यापार की तरह....
ख्वाहिश थी कि चख लूँ दो घूँट प्यार के
तेरे लफ्ज़ दहके सदा अंगार की तरह.....
अब रूठा-रूठी का न हमसे खेल खेलिए
जज़्बात ढह चुके मेरे दीवार की तरह.....
लम्बी हो उम्र तेरी, दुआ तेरे लिए की
अब जी रही है "चाँदनी" मज़ार की तरह....
45 comments:
मांगी नहीं थीं नेमतें तुमसे ज़माने की
तुमने निभाया साथ भी व्यापार की तरह....
भावपूर्ण रचना. हर शेर शानदार
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह.....
ओहो .. गजब ... बेहतरीन
बहुतखूब !
दिल में रहा करते थे पहले प्यार की तरह.
जेहन में पड़ गए हो अब दरार की तरह..
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह.....
बहुत सुन्दर भाव भरे हैं………………शानदार शेर्।
था हमारे पास हमारा भी क्या
जी रहे थे हम उधार की तरह
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ज्योसना जी। हर शेर उम्दा कहा है है आपने...
मांगी नहीं थीं नेमतें तुमसे ज़माने की
तुमने निभाया साथ भी व्यापार की तरह
इस शेर से याद आता है एक गाना...
कुछ लोग मोहोबत को व्यापार समझते हैं
दुनिया को खिलौनो का बाज़ार समझते हैं...
शुक्रिया आप अच्छा लिखती हैं।
बहुत सुन्दर !
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह...
बहुत खूब ... लाजवाब ग़ज़ल है ... हर शेर कुछ अलग सी बात कहता हुवा ....
आपका ये शेर बहुत पसंद आया ... जीवन की हक़ीकत है इस शेर में ...
दिल में रहा करते थे पहले प्यार की तरह.
जेहन में पड़ गए हो अब दरार की तरह..
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह.....
मांगी नहीं थीं नेमतें तुमसे ज़माने की
तुमने निभाया साथ भी व्यापार की तरह....
Kin,kin panktiyon ko dohraun? Harek lajawab hai!
मांगी नहीं थीं नेमतें तुमसे ज़माने की
तुमने निभाया साथ भी व्यापार की तरह....
ख्वाहिश थी कि चख लूँ दो घूँट प्यार के
तेरे लफ्ज़ दहके सदा अंगार की तरह..
बहुत दहकती सी गज़ल ...बहुत खूब ..
अपने को समझ ही नहीं आया कि क्या कहें। सो पांच सितारा पर क्लिक करके निकल लिए हैं।
अपने को समझ ही नहीं आया कि क्या कहें। सो पांच सितारा पर क्लिक करके निकल लिए हैं।
ज्योत्स्ना जी
क्या बात है ! बहुत अच्छा लिखा है आपने …
दिल में रहा करते थे पहले प्यार की तरह
जेहन में पड़ गए हो अब दरार की तरह…
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह…
अब जी रही है "चाँदनी" मज़ार की तरह
आपका तख़ल्लुस है तब तो ठीक , अन्यथा चांदनी के स्थान पर 'ज्योत्सना' आसानी से आ रहा है , एक जितना ही वज़्न है
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूब लाजवाब ग़ज़ल है ... हर शेर कुछ अलग सी बात है
मांगी नहीं थीं नेमतें तुमसे ज़माने की
तुमने निभाया साथ भी व्यापार की तरह.
हर शेर शानदार... बेहतरीन
बहुत सुन्दर गजल....
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
सच प्यार इस तरह किया था
न सोचा की क्या उम्र होगी मेरे पर की
आज लगता है की तम उम्र गुजरेगी
अब आग की तरह
( सच दीदी आप ने तो यहाँ सब दिल से निकली एक अह बयाकी
काश समझ लेते या खुद गर्ग ज़माने वाले प्यार बस आब भी किताबो में ही बया होता है !)
कल भी जल रही चादनी आज भी जल रही है चादनी
Inqlaab.com
बहुत प्रभावशाली ,हर शेर खूबसूरत
और अर्थपूर्ण !
ज़हन में पद गए दरार की तरह!
जी रही है चांदनी मज़ार की तरह!
वाह! आनंद!
आशीष
--
प्रायश्चित
मांगी नहीं थीं नेमतें तुमसे ज़माने की
तुमने निभाया साथ भी व्यापार की तरह..
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां ।
वाह क्या खूब ग़ज़ल है !
एक एक शेर लाजवाब !
बहुत शुभकामनाएं !
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह.....
आपकी इस रचना ने निशब्द कर दिया……………कुछ कहने को ही नही बचा।
मांगी नहीं थी तुमसे नेमतें दुनिया कि
तुमने ही साथ निभाया व्यापार की तरह ..
रिश्तो के फ़र्ज़ तुमसे निभाए ना गए ...
मांगते हो हक ...
शिकायत वाजिब है ...!
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह....
...रिश्तों का सच्चा रूप दर्शाती एक बहुत ही लाज़वाब रचना....आभार....
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह....
...रिश्तों का सच्चा रूप दर्शाती एक बहुत ही लाज़वाब रचना....आभार....
बहुत उम्दा रचना.
sab ek jaisa nahi hota ....good thanks
thanks ..nice poetry
K jisne bhar diye kaante daaman me... unse bhi mili aap yun bahaar ki tereh...
Behad pyari rachna..
बहुत सुन्दर ग़ज़ल- वाह! दाद कबूलो!!
are baap re!!! kassh jiske liye hai......uspe asar ho. mujhe to pata nahi.??
- Choudhary Amit Kr. ['A,]
दिल में रहा करते थे पहले प्यार की तरह.
जेहन में पड़ गए हो अब दरार की तरह..
शानदार ग़ज़ल.......
मांगी नहीं थीं नेमतें तुमसे ज़माने की
तुमने निभाया साथ भी व्यापार की तरह..
riston mein profit & loss account bananewale zara isse padhe..bahut khoob ...
bahut sundar laga apka blog badhai
अब रूठा-रूठी का न हमसे खेल खेलिए
जज़्बात ढह चुके मेरे दीवार की तरह.....
बहुत ही सुन्दर रचना...क्या बात है.. वाह...यूँ ही लिखते रहें...मेरे ब्लॉग में इस बार..
sunder bhav hai .
बहुत सुन्दर! दर्द है!
ज्योत्स्ना जी,
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.........बहुत अच्छा लिखती हैं आप........समझ नहीं आता किसकी तारीफ़ करून ...हर शेर बहुत ही उम्दा है.....दाद कबूल करें.........
और आप उन लोगों में से हैं जिन्होंने मेरे नवनिर्मित ब्लॉग पर मेरी पहली पोस्ट पर टिप्पणी की थी.......तब वह एक छोटा सा पौधा था.......आज कुछ परिपक्व हुआ है..........मैं आपको आमंत्रित करता हूँ की आप मेरे ब्लॉग पर आयें ......और अपनी राय से ज़रूर नवाज़े..........शुभकामनाये|
मेरी ब्लॉग सूची-
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
.. अब जी रही है चांदनी मजार की तरह.. क्या बात है- ऐसा प्यार में ही हो सकता है। किसी ने आपका दिल तोड़ दिया, आपकी भावनाएं कुचल डालीं और फिर भी उसके जीवन से जाते-जाते आपने उसके लिए कुछ किया- तो दुआ कर डाली- खुश रहो, आबाद रहो, हम रहे ना रहे, जहां तुम रहो वहां के शहंशा रहो..। भावनात्मक प्रस्तुति है... जारी रखिये। आज से हम भी आपके फॉलोवर की संख्या में एक अंक जोड़ने के लिए आ टपके हैं- इसके लिए माफ कीजिएगा...
अब दो शब्द आपके बारे में-
मैं व्यथा हूँ हृदय की
प्रत्येक सहृदय की
करुना भी मेरा नाम
कल्पित हृदय का दाह
कचोटता क्यों मन को?
दे नही सकती शीतलता
तो हे देव!
ज्योत्स्ना क्यों मेरा नाम?
ज्योत्स्ना जी, आपके इस परिचय की बात ही निराली है। हां एक बात है आपकी रचनाएं आपके बारे में जो बताती हैं, उससे आपका यह परिचय मेल नहीं खाता। रचनाएं कहती हैं कि आप आग देने वाले को भी शीतलता प्रदान करती हैं, दिल दुखाने वाले के लिए भी दुआ करती हैं। फिर कैसे कह दिया...दे नही सकती शीतलता
तो हे देव! ज्योत्स्ना क्यों मेरा नाम?
मन की भावनाओं को
शब्दों का सुन्दर रूप दे कर
अच्छी रचना कही है ...
मुबारकबाद .
aapke naam ki tarah aapki likhaayi bhi bohot achchi hai.. mere khayaalse taarif karne se bhi pare aapki likhaayi hai... aur aapki soch bohot hi jivant hai.. aisa hi likhte rahiye.. god bless u..
Meine bhi kuch kavitayein.. apne tute phute shabdo mein likhi hai.. aur likhne ki koshish hun ...
Lovely quotes and poems
ज्योत्स्ना जी,
.....बहुत अच्छा लिखती हैं आप........समझ नहीं आता किसकी तारीफ़ करून ...हर शेर बहुत ही उम्दा है.....
दिल में रहा करते थे पहले प्यार की तरह.
जेहन में पड़ गए हो अब दरार की त
matla khoobsoorat hai jyotsna jee..
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह....
baat jab haqdaar kee ho .. aur jab khud ko haqdaar samjhna hai to haath failana kaisa? mujhe lagta hai ki misra e saani par ek nazar aur dalni chahiye..
लम्बी हो उम्र तेरी, दुआ तेरे लिए की
अब जी रही है "चाँदनी" मज़ार की तरह
maqta bhee achha hai ...
majrooh sultaanpuri kee ek ghazal thi
"ham hain mata - e koocha o baazar kee tarah'
uski yaad ho aayi is ghazal ko padh kar ...
Saadar
आप ज्योति है कलम की ,स्याही है कवि इलम की
मन की धरोहरों की तिजोरी है शब्द तन की
हर ब्लॉग पूछता ये ज्योति कहाँ से निकली
मदहोश कर रही ये आग किस चिलम की
मन ने कहा किरोंदे इस शख्श को कहीं पर
जो आग दबाये है बन राख, भाव मन की
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