Wednesday, May 4, 2011

पतंग

कौन देता है आकार
नहीं जानती है
बस ! रंगों से सजी,
डोर पर तनी,
उन्मत्त हो उडती है,
उन्मुक्त आकाश में--

पवन के संग पर इठलाती,
ठुमकियां लेती,
अपने अस्तित्व की तलाश में,
इधर से उधर भटकती--

आत्मरक्षा में,
दूसरों के कन्ने काटती,
विवश ईर्ष्या के पेंचों में उलझ
कभी स्वयं कट जाती---

छत की मुंडेर से लहराता
कभी कोई हाथ
संभाल लेता तो,
जिजीविषा बढ़ जाती,
नहीं तो,
अधिकारों की छीनाझपटी में,
हो जाती है, चिंदी-चिंदी--

उसे, अपने गर्भ में सहेजती है धरा
परतों के भीतर,
और भीतर,
देती है जन्म
नव पादपों के रूप में,
एक अंतराल
परिणित कर देता है
उसे वृक्षों में--

वृक्षों की त्वचा से निकल,
जाने कितनी ही
यातनाओं के द्वार खोलती,
जन्म से जन्म तक
मृत्यु को भोगती,
क्रियाओं की वीथिका से,
जब बाहर आती,
तो, बन जाती है,
वही कागज़---

फिर से-
भरे जाते हैं, जीवन के रंग,
आदर्शों और संस्कारों की
कांट-छांट
देते हैं एक आकार,
बाँस-हड्डियों पर
लेई- मज्जा से चिपकी,
लचकती दृढता के साथ,
बन जाती है
नियति की चकरी पर आश्रित
एक पतंग---

कदाचित इस बार जीवन-डोर
उसे पंहुचा सके,
शून्य की अनन्तता तक ---

26 comments:

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (5-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

gyanu said...

जीवन के तमाम उतार चढ़ावों को प्रतिबिंबित कर रही शब्दों की ये माला.....बेहतरीन प्रस्तुति

Maheshwari kaneri said...

एक पतंग के दर्द का सुन्दर चित्रण किया है बहुत सुन्दर भाव से उसे सार्थक किया है ।
अभिव्यंजना मे आप का स्व्व्गत है \ धन्यवाद

Unknown said...

adbhud bhav ......
sabd hi nahi hae comment ke mare pass

अरुण अवध said...

सुन्दर कविता ! जीवन चक्र के सातत्य को पतंग के माध्यम से प्रकट करती रचना !

संजय भास्‍कर said...

पतंग के दर्द का सुन्दर चित्रण किया है

संजय भास्‍कर said...

अपने भावो को बहुत सुंदरता से तराश कर अमूल्य रचना का रूप दिया है.

Avinash Chandra said...

पूरी कविता का प्रवाह, और प्रयुक्त बिम्ब बहुत सुन्दर और सर्वथा उचित हैं।
शुभकामनाएँ।

मनोज कुमार said...

उम्दा।
“कदाचित इस बार जीवन-डोर
उसे पंहुचा सके,
शून्य की अनन्तता तक ---”

ईश्‍वर से सर्व सम्‍बन्‍ध अनुभव करने का अर्थ है कि आप सभी इच्‍छाओं से पार जा चुके हैं।

Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना ...कहाँ से कहाँ ले गयी आपकी सोच ....कितनी सुन्दरता से आपने जोड़ा पतंग को जीवन से ...!!
ज्योत्त्सना जी आपको बधाई इस कृति के लिए .

Rachana said...

पवन के संग पर इठलाती,
ठुमकियां लेती,
अपने अस्तित्व की तलाश में,
इधर से उधर भटकती--

आत्मरक्षा में,
दूसरों के कन्ने काटती,
विवश ईर्ष्या के पेंचों में उलझ
कभी स्वयं कट जाती---
sunder bhavonse saji kavita
badhai
rachana

सु-मन (Suman Kapoor) said...

कदाचित इस बार जीवन-डोर
उसे पंहुचा सके,
शून्य की अनन्तता तक ---


bahut khoob.....

रश्मि प्रभा... said...

छत की मुंडेर से लहराता
कभी कोई हाथ
संभाल लेता तो,
जिजीविषा बढ़ जाती,
नहीं तो,
अधिकारों की छीनाझपटी में,
हो जाती है, चिंदी-चिंदी--
bahut hi gudhta hai

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना.. सुंदर भावों के साथ

Anupam Karn said...

बहुत बढ़िया!!!!

Anupama Tripathi said...

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है कल ..शनिवार(२-०७-११)को नयी-पुराणी हलचल पर ..!!आयें और ..अपने विचारों से अवगत कराएं ...!!

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता.

सादर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कदाचित इस बार जीवन-डोर
उसे पंहुचा सके,
शून्य की अनन्तता तक ---

पतंग के मध्ग्यम से गहन अभिव्यक्ति

Unknown said...

bahut hi badiya...
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - सम्पूर्ण प्रेम...(Complete Love)

somali said...

adbhut

वाणी गीत said...

कदाचित इस बार ...
यह कदाचित ही जिजीविषा बनाये रखता है ...
दर्शन और अध्यात्म से भरपूर श्रेष्ठ कविता !

रजनीश तिवारी said...

नियति की चकरी पर आश्रित
एक पतंग---
बहुत सुंदर रचना ।

ramji said...

है अनंत में खो जाने के लिए पतंग उड़ती शून्य में , आकाश बुलाता उसे ,बार बार भर उमंग में

आ जाती वह, पर नियति की कौन जाने ..फिर चली आती वहीँ धूल में ,,,,,,,

Dr.Sushila Gupta said...

sundar prastuti. aapka abhar.

Ankit pandey said...

सुंदर भाव अच्छी रचना.

amrendra "amar" said...

बेहतरीन प्रस्तुति

IndiBlogger.com

 

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

BuzzerHut.com

Promote Your Blog