उससे बिछड़ते हुए
मैंने उसे एक डायरी दी
इस वादे के साथ कि
वह लिखेगा,
हर रोज़
एक नई कविता-
और उसके दिये फूल
सुरक्षित हैं,
आज भी
मेरी पाकीज़ा किताबों में-
बरसों बाद
जब भी सुन लेती हूँ
दर्द से भीगी
उसकी गज़लें-
पैबस्त हो जाती है
मेरे भीतर
एक खुशबू
सूखे गुलाबों की--
25 comments:
bahut sundar
bahut sundar
uski yaad achchhi lagi:)
खूबसूरत एहसास
क्या कहने,
बहुत सुंदर
सुंदर भाव, सार्थक प्रस्तुति।
------
मायावी मामा?
रूमानी जज्बों का सागर है प्रतिभा की दुनिया।
आंखें भिंगो देने वाली कविता।
बहुत प्यारी कविता है...किसी के दिए फूल और डायरी तो सहेज के रखने वाले होते हीं हैं...
वाह...........
.... प्रशंसनीय रचना - बधाई
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
किसी फूल से कहो कि आज मेरे लिये खिले
किसी पतंग से कहो कि मेरे हाथों में आ जाये
किसी बच्चे से कहो कि मुझे चिढा़ये
जुर्म क्या? ये सजा क्यों है?
बहुत खूब .. वादा दोनों ही नुभा रहे हैं ... वो खुशबू भी नहीं मरती और गज़लों का दर्द भी ताज़ा रहता है ...
सुंदर कविता। मेरे पास भी किसी की दी हुई ऐसी एक डायरी है।
छोटी सी, ख़ूबसूरत कविता। :)
सुंदर रचना.
behad sundar...
पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
***************************************************
"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
मैं ने देखा सोते हुए एक महकता हुआ सा ख्वाब .....
नींद से जागा तो देखा हाथ में था मेरे सुर्ख गुलाब ....
मैं ने देखा सोते हुए एक महकता हुआ सा ख्वाब .....
नींद से जागा तो देखा हाथ में था मेरे सुर्ख गुलाब ....
खूबसूरत पंक्तियाँ
adbhut...adwitiya...shabdo se pare ehsaaso ki duniya ki sair...
ख़ूबसूरत प्रस्तुति, आभार.
please visit my blog too.
bahut sundar bhav
jyotsna jee bahut hi sundar rachna hai---aabhar
Post a Comment