Wednesday, February 18, 2009

नारी मन

तुम मेरे जैसी हो
या मैं तुम्हारे भीतर
कैसे जान लेती हो
तुम मेरे सुख दुःख
मैं मुस्कराती हूँ तो तुम्हें भी
हँसता हुआ पाती हूँ
मेरी पीड़ा की तड़प
तुम्हारी आंखों से क्यों बह निकलती है?

दर्पण कहता है----
मैं तुम जैसी बिल्कुल नही
मैं थोडी छोटी, काली और मोटी
पर तुम अप्सरा सी

निष्ठुर दर्पण क्या जाने
भौतिकता में सत्य को खोजता
अन्तर में कहाँ झाँक पता है?

हमारी सोच, प्रेम, रोष,
क्षोभ,करुना दया, ममता
सबकुछ तो एक जैसा है
क्योंकि हम नारी का "मन" हैं
शायद तभी एक जैसे हैं!

21 comments:

रश्मि प्रभा... said...

कितनी सरलता से नारी मन की सशक्त व्याख्या की है....यह मन ही तो गहराई को पकड़ता है,और खामोशी में हमसफ़र बन जाता है.........बहुत ही अच्छी रचना,मन के करीब

Unknown said...

aap ki is rachna ko padhne ke baad sach mein nari man ko itna samajh paya hoon!
shubhkaamnayein sweekarein! :)

MANVINDER BHIMBER said...

हमारी सोच, प्रेम, रोष,
क्षोभ,करुना दया, ममता
सबकुछ तो एक जैसा है
क्योंकि हम नारी का "मन" हैं
शायद तभी एक जैसे हैं!
.........बहुत ही अच्छी रचना,मन के करीब

નીતા કોટેચા said...

नारी मन हुवा तब व्याकुल..
हुवा जब koi भी व्याकुल..व्याकुल..
उसके ह्रदय में टीस उठती है..
जब किसीकी भी आह सुनती है...

नारी का मन है ही ऐसा..न किसीकी परेशानी देख सके और न ही किसीको परेसान कर सके...ना किसी का दर्द देख सके और न ही किसीको दर्द दे सके...
नारी महान है..

VIJAY VERMA said...

खूबसूरत एहसासों से पूर्ण रचना

संगीता पुरी said...

बहुत सही....बहुत सुंदर।

vinay sheel said...

nishtur darpan kahan jaan paataa hai......... naari man ka ehasaas dilati ek khoobsurat rachana hai.

Anonymous said...

har naari ke bheetar wahi vedna hi to hai, jis tarah har purush ke bheetar wahi ahankaar..

anubhooti said...

नारी मन के मनोभावों का एक पक्षीय आंकलन लगता है , नारीमन केवल इतने शब्दों में ही वर्णित नहीं किया जा सकता ........

Vinay said...

सरल शब्द और गहरे प्रभाव, बधाई

---

गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम

ρяєєтii said...

दोस्त् जी क्या कहे ...
यह तो मेरे ही ह्रदय की बात है ..
शायद तभी तो हम एक से है , और आप् मेरे दोस्त् जी हो ...
Right ?

प्रदीप मानोरिया said...

हमारी सोच, प्रेम, रोष,
क्षोभ,करुना दया, ममता
सबकुछ तो एक जैसा है
क्योंकि हम नारी का "मन" हैं
शायद तभी एक जैसे हैं!
sundar aur andar ke bhavo ko ukerti sahaj abhivyakti

Puja Upadhyay said...

कितनी खूबसूरती से नारी मन का बिंब उकेरा है. सुंदर कविता.

Unknown said...

mujhe aap se jyada to aata nahiun hai bas padh sakta hoon

Unknown said...

aaj lucknow ke top blogs ki suchi main aapki rachna dekhi,behad khushi hui ,vastav main nari man ki vyatha aur katha ko samajh pana atyant kathin hai ,aap ki kavita padhkar aaj jayshankar prashad ki kamayani ki yaad aa gayi

सीमा रानी said...

बहुत सुंदर ज्योत्सना जी .आप हमारे ब्लॉग पर आई स्वागत है .आशा है मिलते रहेंगे और विचरों का ,भावों का आदान -प्रदान होता रहेगा .शुभ कामनाएं

shama said...

Aapke blogpe pehlee baar aayee aur aapke " parichay" nehee man moh liyaa....naree manki kitnee sundar tasveer rakhee hai aapne....komal par sashkt....
mai na lekhika hun na kavi par apnee jeevanee likh rahee hun...ek khaas maqsadse....jiske dauran aise ajeeb, anubhav aaye ki dil dehel jaaye...khair un anubhawonki charcha phir kabhi....
ab to aapkee rachnaakee kayal ban gayee hun...

Anonymous said...

अद्भुत है..आपकी रचना.

कतरब्योंत said...

ज्योत्सना जी, आपकी कवितायें पढ़ी. अच्छी हैं. यह जानकर की आप लखनऊ में हैं और भी अच्छा लगा. मुझे लखनऊ में बीता अपना बचपन और साहित्यिक गोष्ठियों की याद आ गई. कभी लखनऊ में मैं भी कविता और व्यंग्य के क्षेत्र में तुरम खा हुआ करता था. खैर, पिछले दस साल से कभी पंजाब, तो कभी रांची भटक रहा हूँ. हाँ, आपकी कवितायें अच्छी हैं, बधाई
ashok mishra.www.katarbyont.blogspot.com

Unknown said...

aap mere blog par aae, shukria. apki kavitaen marmik to hain hi, behad prabhvit bhi karti hain. badhai. chetan anand

ss said...

bhavpurn sundar kavita. badhai.

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