Friday, March 6, 2009

मेरी भावना

मुझे नहीं मालूम की मैं
इन्द्रधनुष पर झूलना चाहता हूँ
या नहीं----
पर्वतों पर चढ़ कर
आकाश पकड़ना चाहता हूँ
या नहीं----
पर जब भी
माँ का आँचल पकड़ता हूँ,
इन्द्रधनुष के सारे रंग पाता हूँ
जब मैं आकाश की और देखता हूँ
पर्वत जैसे----अपने पिता के कन्धों पर
खुद को पाता हूँ
देखता हूँ----
बादल पर्वत को
सलाम करने खुद ही झुक आते हैं
जब तारों को
अपनी मुट्ठी में पकड़ना चाहता हूँ
मेरा पर्वत अपने पंजों पर
मुझे और ऊपर उठा देता है
और कहता है----
अब अपने पैरों पर खड़े हो जाओ
सारा आकाश तुम्हारा है...


नोट : उपर्युक्त रचना मेरे बेटे शशांक की भावाभिव्यक्ति है॰ अभी वो कक्षा ग्यारह का विद्यार्थी है॰ कृपया उसे अपने आशीष से अभिसिंचित करें।

27 comments:

Unknown said...

mere bhavnaon ko is prakaar vyakt karne ke liye dhanyawaad!
thanks mom!

ρяєєтii said...

भगवान् करे तुम सदैव ऐसे ही इन्द्रधनुष के रंग पाओ माँ के आँचल में , सदैव पर्वत सामान पापा की छत्रछाया में पलो-बढो , और सारा आसमान तुम्हारा हो ....

बहोत खूब शशांक ...
God Bless u... Preeti Aunty...

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत बढ़िया रचना
होली पर्व की हार्दिक शुभकामना

Unknown said...

maine kooch arsa pehle ek aise parivaar ko jana jo na sirf ek dusre ke rakt sambandhi thay balkiun sabhi ke liye sanvednaon ka dharatal bhi ek sa tha ek si vidwta ek si nirmalta ek sa dristikon
aaj shashank ko padhte waqtlaga ,main hindi sahitya ka aane wala samridh aur ojaswi kal padh raha hun,aaj main ashaswt hua ,ki hindi kavita her yug main jivita rahegi.shshank ki ye kavita ab tak internet par padhi gayi meri pasandida kavitaon main se ek hai ,ye main keh sakta hun SHSHANK KAL TUMHARA HAI ,MAA KE AANCHAL AUR PARWAT SARIKHE PITA KE KANDHON KO THAAME SAARI UNCHHAIYA CHOO LO ,HAMARA AASHIRWAD,SNEH AUR PYAR TUMHARE SAAATH

masoomshayer said...

ghar men buzrg koyee bada hona achha lagata hai
pedon ke saaye men khada hona achha lagata hai

bahut achee see lage ekavita

Unknown said...

शशांक की कविता को प्रस्तुत कर आपने शशांक को कविता और साहित्य के सुनहरे संसार से परिचित कराया, इसके लिए ज्योत्स्ना जी आपका आभार.
प्रथम कविता इतनी सशक्त है कि अब हर दिन इंतज़ार रहेगा नयी नए रचनाओं का. खूब लिखो अच्छा लिखो शशांक निशंक लिखो.
राजेंद्र यादव के लिखे उपन्यास "सारा आकाश" से -
सेनानी करो प्रयाण अभय भावी इतिहास तुम्हारा है,
ये अनल शमां के बुझते हैं सारा आकाश तुम्हारा है.

विजय तिवारी " किसलय " said...

ज्योत्स्ना जी
नमस्कार
सार्थक, दिशाबोधी रचना के लिए बधाई.
अपनी भावना सही अभिव्यक्ति .


अब अपने पैरों पर खड़े हो जाओ
सारा आकाश तुम्हारा है...
- विजय

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर लिखा है।

mehek said...

bahut sundar rachana hai ,bhav bahut marmik,khubsurat.

विजय तिवारी " किसलय " said...

ज्योत्स्ना जी
नमस्कार
सार्थक, दिशाबोधी रचना के लिए बधाई.
अपनी भावना सही अभिव्यक्ति .

संत शर्मा said...

Waah.. behad khubsurat avivyaqti.

નીતા કોટેચા said...

अरे वाह्ह बहोत बढ़िया ...मम्मी का बेटा..बहोत ही बढिया लिखा है अब कभी पेन नीचे मत रखना..बस लिखते रहेना...बच्चे जब लिखते है तब माँ को कितनी ख़ुशी होती है मुझे ही मालूम है...मुझे बहूत अच्छा लगा पढ़कर की मम्मी और पापा पे लिखा आपने..बस उनका आशीर्वाद हमेशा अपने पे रखना..कोई तकलीफ जिन्दगी में नहीं आयेगी बेटा..ज्योत्स्ना जी बहूत बधाई..

डॉ .अनुराग said...

बहुत अच्छे आलोक ....अपनी इस प्रतिभा को अपनी शिक्षा के साथ जारी रखना .जिस उम्र के दौर से तुम गुजर रहे हो वह करियर का सबसे imp दौर है ..याद रखना गुजरा वक़्त वापस नहीं आता ओर इस दुनिया में कोई लाश्य ऐसा नहीं जिसे प्राप्त न किया जा सके ....अपने लक्ष्य को सामने रखना ओर उस पर जामे रहना ...बाकी जिंदगी सब कुछ दे देगी .

रश्मि प्रभा... said...

शशांक , जिसके पास माँ-सा इन्द्रधनुष,पिता समान पर्वत हो,
उसकी हर सफलता मुठी में होती है.......
इतनी कम उम्र में इतने सशक्त भाव इन्द्रधनुष और पर्वत का ही कमाल है,
मेरा आशीष लो और इसी तरह लिखते रहो....

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

jyotsnaji,
achchhi rachnaao tatha meri ghazl par comment ke liye dhanyawaad.
- prasanna vadan chaturvedi

Alpana Verma said...

aap ke bete ne is kavita mein bahut hi safal abhivyakti ki hai.bhavon ko khubsurati se bandha hai.
देखता हूँ----
बादल पर्वत को
सलाम करने खुद ही झुक आते हैं
जब तारों को
अपनी मुट्ठी में पकड़ना चाहता हूँ
positive aur aage badhne ka jazba liye hue kavita hai.
aap ke bete ke liye shubhkamnayen.

Holi ki bhi mubarkbad swikaren.

प्रदीप मानोरिया said...

प्रिय शशांक
अपने भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति सहज भाषा बधाई हो आपके शैक्षणिक और साहित्य के क्षेत्र में शिखर सम उत्थान हेतु मेरी ढेर सी शुभकामनाएं
आपकी ही बात पर दो लाइन प्रस्तुत हैं
सप्त धनुक महताब घटाएं तारे नगमे बिजली फूल
मां के आँचल में सब कुछ , माँ आशीष सदैव रहे

L.Goswami said...

बहुत खूब ..आगे भी बेटे की रचना लायें .मेरा आशीष दें उसे.

AAKASH RAJ said...

आपकी कविता पढ़ कर मैं अपने ही सपनों में खो गया , आपने बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है , मैं आशा करता हूँ की एक दिन आपका सारा आसमान जरुर होगा.........

ज़ाहिद मुख़र्जी said...

ज्योत्स्ना जी ,

शशांक की कविता सचमुच बड़ी अच्छी लगी । इस छोटी उम्र में इतनी प्रबल भावोत्पादकता इस बात का संकेत देती है कि हिन्दी कविता आने वाले समय में एक अनमोल कलम से समृद्ध होने वाली है । उसे मेरी ढेर सारी शुभ कामनाएं और आशीर्वाद दें ।

RAJESH BISSA said...

"मेरी भावना".... इतनी शानदार अभिव्यक्ति कि मैने इस रचना को कई बार पढ़ा, यह रचना आशा जगाती है, ज्योत्सना जी, शशांक में प्रतिभा कूट कूट कर भरी हुई है बहुत उंचाईयों को जायेगा..... शुभाशीष .... और हां मै आपका आभारी हूं जो आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...... राजेश बिस्सा

Deepak "बेदिल" said...

pahle to me aapko namshkaar karta hu or baad me dhnayewaad.blog par tipni karne ke liye..or ashirwaad dene ke liye.or mere mitr jo wese mere ham-umar lagbhag hai ..un ke shabd rachna ka loga aaafi sakht hai.unda.indar dhanush kaa warnan karte huae kamaal kiya sir aapne..very good ..jyada to me hi nahi janta par jaha tak janta hu aap bhi apni maa ke charne kamal ko chu kar aage badte jaoge..jyotshan ji ant me namshkaar

Dr. Tripat Mehta said...

bahut sunder!

वर्तिका said...

Di, shashank ki ye rachnaa bahut bahut paripakv rachnaa hai... uske ujjwal bhavishya ke liye meri hardik shubkamnein... :)

Ashk said...

पर जब भी
माँ का आँचल पकड़ता हूँ,
इन्द्रधनुष के सारे रंग पाता हूँ
जब मैं आकाश की और देखता हूँ
पर्वत जैसे----अपने पिता के कन्धों पर
खुद को पाता हूँ.
in panktiyon ke mamatv ke bhavoon ne man ko chhoo liya.
badhai !

hem pandey said...

'माँ का आँचल पकड़ता हूँ,
इन्द्रधनुष के सारे रंग पाता हूँ'
********************
'अपने पैरों पर खड़े हो जाओ
सारा आकाश तुम्हारा है...'
-सुंदर पंक्तियाँ.

Mai Aur Mera Saya said...

APP DONO KO BADHAI

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