तुम हो
एक सुंदर अनुभूति
अनुभूति से उपजी,
पावन स्मृति
स्मृति में----
कुछ हँसी-खुशी,
कुछ मीठे झगड़े
और इन सबमें
बहती निश्छलता
निश्छलता प्रेम सी पवित्र
और इसी पवित्रता को
कहते हैं मित्रता
तो सुनो मित्र!
"मित्रता जब तुममें सिमट जाए,
तो तुम मित्र से,
ऊपर उठ जाते हो"
हर सम्बन्ध से परे----
पावन हो जाते हो
तो तुम मित्र कहाँ रह जाते हो?
समूची मित्रता हो जाते हो
29 comments:
मित्रता की अच्छी परिभाषा दी है।
सुन्दर कविता,
बधायी।
"मित्रता जब तुममे सिमट जाये,
तो तुम मित्र से ऊपर उठ जाते हों'
हर संबंधो से परे,
पावन हों जाते हों |
एक खुबसूरत विचार का वहां करती एक बेहतर अभिव्यक्ति |
क्या होता है मित्र
बहुत अच्छा खींचा चित्र
बहुत अच्छा लिखा आपने एक मित्र से मित्रता तक की दास्ताँ ..............
हर सम्बन्ध से परे----
पावन हो जाते हो
bahut acchi lagi ye panktiyan
mitrta yadi sabal hai
hr sambandh se prabal hai
अनकहा सा कुछ जोड़े रखता है ...कभी कभी जीवन को
बहुत बढिया लिखा है..
मित्रता एक अनूठी सौगात है और उससे सम्बंधित हर सूक्ष्म एहसासों को तुमने परिष्कृत ढंग से लिखा है......बहुत ही
अलग -सी कोमल अनुभूतियाँ हैं
बहुत ही सुन्दर रचना । भावाभिव्यक्ति बेहतरीन लगी ।
बहुत सुन्दर शब्दचित्र खींचा है।बधाई।
मित्रता
एक सुन्दर अनुभूति
एक पावन स्मृति
प्रेम सी पवित्र निश्छलता
- वाह!
मैत्री भाव की पराकाष्ठा से अभिभूत कृति.
"हर सम्बन्ध से परे----
पावन हो जाते हो
तो तुम मित्र कहाँ रह जाते हो?
समूची मित्रता हो जाते हो"
निश्छलता प्रेम सी पवित्र
और इसी पवित्रता को
कहते हैं मित्रता
सच बहुत ही सुंदर शब्दों को पिरोया है आपने साभार
haan isi mitrataa ko mera naman hai.....sweekaar karen....mitrataa kee kavitaa ho sach.....baat to ek hi hai....hai naa......!!
ज्योत्स्ना बहन,
मित्रता को लेकर आपकी भावाभिव्यक्ति से मैं अभिभूत हूँ.
काश मानव समाज में ये गुण विकसित होता जाए.
- विजय
निश्छलता प्रेम सी पवित्र
और इसी पवित्रता को
कहते हैं मित्रता
bahut sundar jyotsana jee
शायद ये कहना गलत नहीं होगा ,ज्योत्स्ना कविता लिखती नहीं ,कविता को जीती हैं |जिंदगी जीने का ये शायद सबसे खुबसूरत तरीका है |
इस कविता में मित्रता के निश्छल भाव ,शब्द बनकर हमें निरंतर भिगो रहे हैं ,ज्योत्स्ना मित्रता की अनुभूति को बेहद इमानदारी से तो व्यक्त करती ही हैं ,एक बिंदु पर इसे प्रेम की पवित्र थाती से जोड़ भी देती हैं ,ये साहस अनूठा और अभिनव हैं , ज्योत्स्ना नयी कविताओं का प्रमुख हस्ताक्षर शायद इसी वजह से है
मित्रता की आपकी परिभाषा से सहमति है।
बहुत सही बात कही आपने
दुनिया तो सारी स्वार्थ से भरी ,
स्वार्थी संबंधो को क्या कहु ?
प्यार एसा निस्वार्थ आपका ,
चलो आपको " मित्रता " कहु ...
Dost ji bahut paawan rachna hai yeh... badhai ...!
Mitra aur Mitrata ki sunder abhivayakti di hai aapne.... ek bahut hi sundar kavita.....
jo pratyaksh hai uske pare dekh paana shayad sab k bas ki baat nahin.... par aap naa sirf vo dekh paati hain balki dikhaane ki bhi kshamta rakhti hain....
"मित्रता जब तुममें सिमट जाए,
तो तुम मित्र से,
ऊपर उठ जाते हो"....
ye panktiyaan dil ko choo gayin aur shayad ankit ho gayin wahan....
mitr aur mitrata ki aisi paribhasa .....apko naman karta hu
इतने संक्षिप्त शब्दों में इतनी बड़ी मित्रता
तुम हो
एक सुंदर अनुभूति
अनुभूति से उपजी,
पावन स्मृति
स्मृति में----
कुछ हँसी-खुशी,
कुछ मीठे झगड़े
और इन सबमें
बहती निश्छलता
निश्छलता प्रेम सी पवित्र
और इसी पवित्रता को
कहते हैं मित्रता
तो सुनो मित्र!
"मित्रता जब तुममें सिमट जाए,
तो तुम मित्र से,
ऊपर उठ जाते हो"
हर सम्बन्ध से परे----
पावन हो जाते हो
तो तुम मित्र कहाँ रह जाते हो?
समूची मित्रता हो जाते हो
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ati uttam..no words for comments .i m speechless
Jyotsana Pandey Ji,
Aaj pehli baar maine apne bete ke liye ek kavita ko dhoondna shuru kiya aur mil gayi aapki ye panktiyan......
Vishwas karen.. mere paas shabd nhi hai....inki tareeef karne ke liye....
मित्र जब मित्रता बन जाता है अपना कुछ खास सा हो जाता है
उसके गुण दोष नहीं गिने जाते बस प्रेम ही प्रेम नजर आता है
राधा बुनती थी रंगोली जब श्याम गैयाँ चराने जाता है
आप छुप के आनंद लेती थी श्याम जब रंगोली पे रीझ जाता है
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