Sunday, April 5, 2009

तुम हो मित्रता...

तुम हो
एक सुंदर अनुभूति
अनुभूति से उपजी,
पावन स्मृति

स्मृति में----
कुछ हँसी-खुशी,
कुछ मीठे झगड़े
और इन सबमें
बहती निश्छलता

निश्छलता प्रेम सी पवित्र
और इसी पवित्रता को
कहते हैं मित्रता

तो सुनो मित्र!
"मित्रता जब तुममें सिमट जाए,
तो तुम मित्र से,
ऊपर उठ जाते हो"

हर सम्बन्ध से परे----
पावन हो जाते हो
तो तुम मित्र कहाँ रह जाते हो?
समूची मित्रता हो जाते हो

29 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मित्रता की अच्छी परिभाषा दी है।
सुन्दर कविता,
बधायी।

संत शर्मा said...
This comment has been removed by the author.
संत शर्मा said...

"मित्रता जब तुममे सिमट जाये,
तो तुम मित्र से ऊपर उठ जाते हों'

हर संबंधो से परे,
पावन हों जाते हों |

एक खुबसूरत विचार का वहां करती एक बेहतर अभिव्यक्ति |

पी के शर्मा said...

क्‍या होता है मित्र
बहुत अच्‍छा खींचा चित्र

AAKASH RAJ said...

बहुत अच्छा लिखा आपने एक मित्र से मित्रता तक की दास्ताँ ..............

renu agarwal said...

हर सम्बन्ध से परे----
पावन हो जाते हो

bahut acchi lagi ye panktiyan
mitrta yadi sabal hai
hr sambandh se prabal hai

डॉ .अनुराग said...

अनकहा सा कुछ जोड़े रखता है ...कभी कभी जीवन को

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लिखा है..

रश्मि प्रभा... said...

मित्रता एक अनूठी सौगात है और उससे सम्बंधित हर सूक्ष्म एहसासों को तुमने परिष्कृत ढंग से लिखा है......बहुत ही
अलग -सी कोमल अनुभूतियाँ हैं

Unknown said...

बहुत ही सुन्दर रचना । भावाभिव्यक्ति बेहतरीन लगी ।

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर शब्दचित्र खींचा है।बधाई।

hem pandey said...

मित्रता
एक सुन्दर अनुभूति
एक पावन स्मृति
प्रेम सी पवित्र निश्छलता
- वाह!

anubhooti said...

मैत्री भाव की पराकाष्ठा से अभिभूत कृति.
"हर सम्बन्ध से परे----
पावन हो जाते हो
तो तुम मित्र कहाँ रह जाते हो?
समूची मित्रता हो जाते हो"

मोहन वशिष्‍ठ said...

निश्छलता प्रेम सी पवित्र
और इसी पवित्रता को
कहते हैं मित्रता

सच बहुत ही सुंदर शब्‍दों को पिरोया है आपने साभार

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

haan isi mitrataa ko mera naman hai.....sweekaar karen....mitrataa kee kavitaa ho sach.....baat to ek hi hai....hai naa......!!

विजय तिवारी " किसलय " said...

ज्योत्स्ना बहन,
मित्रता को लेकर आपकी भावाभिव्यक्ति से मैं अभिभूत हूँ.
काश मानव समाज में ये गुण विकसित होता जाए.
- विजय

प्रदीप मानोरिया said...

निश्छलता प्रेम सी पवित्र
और इसी पवित्रता को
कहते हैं मित्रता
bahut sundar jyotsana jee

Unknown said...

शायद ये कहना गलत नहीं होगा ,ज्योत्स्ना कविता लिखती नहीं ,कविता को जीती हैं |जिंदगी जीने का ये शायद सबसे खुबसूरत तरीका है |
इस कविता में मित्रता के निश्छल भाव ,शब्द बनकर हमें निरंतर भिगो रहे हैं ,ज्योत्स्ना मित्रता की अनुभूति को बेहद इमानदारी से तो व्यक्त करती ही हैं ,एक बिंदु पर इसे प्रेम की पवित्र थाती से जोड़ भी देती हैं ,ये साहस अनूठा और अभिनव हैं , ज्योत्स्ना नयी कविताओं का प्रमुख हस्ताक्षर शायद इसी वजह से है

Manish Kumar said...

मित्रता की आपकी परिभाषा से सहमति है।

अनिल कान्त said...

बहुत सही बात कही आपने

ρяєєтii said...

दुनिया तो सारी स्वार्थ से भरी ,
स्वार्थी संबंधो को क्या कहु ?
प्यार एसा निस्वार्थ आपका ,
चलो आपको " मित्रता " कहु ...

Dost ji bahut paawan rachna hai yeh... badhai ...!

Meynur said...

Mitra aur Mitrata ki sunder abhivayakti di hai aapne.... ek bahut hi sundar kavita.....

वर्तिका said...

jo pratyaksh hai uske pare dekh paana shayad sab k bas ki baat nahin.... par aap naa sirf vo dekh paati hain balki dikhaane ki bhi kshamta rakhti hain....

"मित्रता जब तुममें सिमट जाए,
तो तुम मित्र से,
ऊपर उठ जाते हो"....

ye panktiyaan dil ko choo gayin aur shayad ankit ho gayin wahan....

Mai Aur Mera Saya said...

mitr aur mitrata ki aisi paribhasa .....apko naman karta hu

Unknown said...

इतने संक्षिप्त शब्दों में इतनी बड़ी मित्रता

deep said...

तुम हो
एक सुंदर अनुभूति
अनुभूति से उपजी,
पावन स्मृति

स्मृति में----
कुछ हँसी-खुशी,
कुछ मीठे झगड़े
और इन सबमें
बहती निश्छलता

निश्छलता प्रेम सी पवित्र
और इसी पवित्रता को
कहते हैं मित्रता

तो सुनो मित्र!
"मित्रता जब तुममें सिमट जाए,
तो तुम मित्र से,
ऊपर उठ जाते हो"

हर सम्बन्ध से परे----
पावन हो जाते हो
तो तुम मित्र कहाँ रह जाते हो?
समूची मित्रता हो जाते हो

*******************

ati uttam..no words for comments .i m speechless

Unknown said...

Jyotsana Pandey Ji,
Aaj pehli baar maine apne bete ke liye ek kavita ko dhoondna shuru kiya aur mil gayi aapki ye panktiyan......

Vishwas karen.. mere paas shabd nhi hai....inki tareeef karne ke liye....

ramji said...

मित्र जब मित्रता बन जाता है अपना कुछ खास सा हो जाता है

उसके गुण दोष नहीं गिने जाते बस प्रेम ही प्रेम नजर आता है

राधा बुनती थी रंगोली जब श्याम गैयाँ चराने जाता है

आप छुप के आनंद लेती थी श्याम जब रंगोली पे रीझ जाता है

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