Friday, June 19, 2009

झटका!


बात उन दिनों की है जब मैं कक्षा 4 और मेरा भाई कक्षा 2 के विद्यार्थी थे. दादी-बाबा के अत्यधिक स्नेह के कारण हम लोगों को घर के भीतर ही खेलने की अनुमति थी.
मैं और भाई बेडरूम में खेलते रहते थे. पड़ोस का एक छोटा बच्चा, जिसका नाम हर्ष था, वो भी हम लोगों के साथ था. हमारा खेल थोडा सा अजीब था.

मेरा भाई जो स्वभाव से बहुत ही खुराफाती था, उसने टेलीफ़ोन का जैक निकाला और मुंह मैं डाल के देखा, फिर बोला बड़ा मज़ा आता है तुम भी डाल के देखो. मैंने भी जैक मुंह में डाला तो एक हलके से झटके की अनुभूति हुई. फिर क्या था! हमारा खेल शुरू हुआ और खिलौना था हर्ष! हम जैक को उसके मुंह में डालते, उसे हिलते हुए देखते फिर निकाल लेते. जैसे ही जैक उसके मुंह में जाता, उसकी आँखें बाहर और वो "vibrate" करने लगता! पर फिर क्या था, हमारी हंसी ने हमारी पोल खोल दी. और उस दिन जो पड़ी थी वो आज भी याद है!
भाई, हर्ष और मैं

24 comments:

Udan Tashtari said...

बाप रे, इतना खतरनाक खेल!!

संत शर्मा said...

:) Yeh bhi khub rahi, Bachpan yaisi kayi nadaniyo ka swarup hota hai, jo taumr ke liye na bhula sakne wali khati mithi yaade chor jata hai.

श्यामल सुमन said...

बचपन की यादें तो सुहानी होतीं हैं लेकिन आपका खेल तो सचमुच खतरनाक था।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

डॉ. मनोज मिश्र said...

yh to bahut hee khtranaak shauk tha.

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

खतरनाक खेल था वो!!!!

सावधानी बरते भविष्य मे।

हे प्रभु यह तेरापन्थ

मुम्बई टाईगर

डॉ .अनुराग said...

आईला !

ρяєєтii said...

Ab bhi itne hi shaitaan ho kya tum dono ? wees khel to khatarnaak tha...!

anubhooti said...

yeh achha raha ki jo us din padi thi aaj bhi yaad hai....
tum to kuchh sudhar gayee par bhai to abhi bhi khurafati hai.........
-----------take care for future .
wishing u both all the best.......

शोभना चौरे said...

acha hua jhtka jyada ghra nhi tha .

वीनस केसरी said...

यही शरारत मैंने भी की थी एक दिन जब मुझे पता चला की फ्रिज के स्तेप्लैज़र में करेंट आ गया है तो अपने किरायेदार के लड़के जिसकी उम्र ८ साल थी से जबरदस्ती फ्रिज खोलवाया था
उसके बाद तो ....................


मगर आप भी कम नहीं :)
वीनस केसरी

masoomshayer said...
This comment has been removed by the author.
रश्मि प्रभा... said...

padee n maar.....theek hua

masoomshayer said...

kamal ka lekhan hai ghatana sajeev kar dee tum ne

विजय तिवारी " किसलय " said...

आपके इस संस्मरण से अभिभावक सीख लेकर कम से कम कुछ ऐसा - वैसा न करने की हिदायत तो देंगे ही.
लेकिन मेरी भी समझ में आ गया कि भाई ही नहीं ज्योत्स्ना भी बचपन में खुराफाती रही होगी, वैसे अब ज्योत्स्ना जी समझदार और गंभीर भी है.
- विजय

प्रदीप मानोरिया said...

bahut sajeev chitran
waah wah jyotsana jee

sumi said...

wah kya jatka tha............

वर्तिका said...

जोर का झटका अभी तक याद रह गया ना दी... :) पर आप भी शरारती थीं बचपन में और वो भी इतना यह पोल अब जा के खुली है...

satish kundan said...

bachpan ki khurafat....bahut jhatka de gaya

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

And all this while I kept on thinking that 'Vibrational' mode was designed by Mobile phone manufactureres!
www.sachmein.blogspot.com.

Unknown said...

achchhe bachche aise khatarnaak khel nahee khelte. aage se aisa kiya to - - - - -

aare jyotsnaa jee sabhee kuchh naa kuchh khuraafaat karte hee hain

Unknown said...

मेरे हँसने का सबब न पूछो लोगों, सिसकियाँ यूं ही मेरी निकलती हैं .....


BAHOT KHUB

मुकेश कुमार तिवारी said...

ज्योत्सना जी,

बचपन जो ना कराये वो कम।

रोचक वर्णन ।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

VIJAY VERMA said...

सुंदर कल्पना

hem pandey said...

बचपन की खुराफात! बाप रे !

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