Saturday, August 29, 2009

कुछ मीठा हो जाए

उसने कहा--
'आज शाम कुछ मीठा हो जाए'

"कुछ मीठा हो जाए" का मतलब ये बिलकुल नहीं कि-
रंगीन रैपर में लिपटे
चाकलेट उसे पसंद हैं---

मिठाइयाँ----?
नहीं-नहीं!!
चालीस के दशक में,
मिठाइयां उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं........
ख़ुदा उसे सेहत बख्शे, उम्रदराज़ करें----

वो सड़कछाप मजनूँ भी नहीं कि
अपने गलत लफ्जों को
"मीठा" कि चाशनी में लपेटे,
और मुझ पर फेंके ----

मेरा आशिक भी नहीं जो
शाम ढले,
कुछ मीठे अहसासों में
गुम होने कि बात करता हो----

शायद! दुनिया में दर्द ज्यादा हैं,
और उसमें सहने का साहस कम
दूसरों के आँसुओं का खारापन
उसे विवश कर देता है॰
वह कह उठता है ---
"आज शाम कुछ मीठा हो जाए"

वो मेरी और आपकी तरह,
कविता में जीता है...
सोचती हूँ, आज शाम
उसे एक मीठी-सी नज़्म परोस दूँ!!

13 comments:

संत शर्मा said...

Mithi kavita ke liye badhai.

संगीता पुरी said...

स्‍वास्‍थ्‍य को बिना नुकसान पहुंचाए .. सचमुच मीठा !!

ρяєєтii said...

मीठा का एहसास ,
और -
आपकी मीठी नज़्म ...
यकीनन कुछ मीठा हो जाये दोस्त जी ...!

masoomshayer said...

इस से मधुर मीठा और क्या लिखा जा सकता है
माधुरतम रचनाओं में से एक है ये रचना ऐसी और मीठाई आती रहे यही कामना है

Arshia Ali said...

Bilkul ho jaaye jee.
( Treasurer-S. T. )

दिनेशराय द्विवेदी said...

हमारे यहाँ तो नमक को ही मीठा कहते हैं।
कविता के भाव सुंदर हैं।

श्यामल सुमन said...

रचना बहुत मीठी है ज्योत्सना जी।

हेमन्त कुमार said...

बेहतर रचना । आभार ।

36solutions said...

सहज सरल शब्‍दों में गहरी मीठी अभिव्‍यक्ति. आभार.

रश्मि प्रभा... said...

ek mithi nazm ki mithaas idhar bhi

M VERMA said...

सोचती हूँ, आज शाम
उसे एक मीठी-सी नज़्म परोस दूँ!!
जी हाँ बेहतर खयाल है -- नज़्म जब अपने नाज़ुक स्पर्श के पर खोलेगी तो शायद कुछ मीठापन आ जाये. और देखिये मीठापन आ भी गया.
बहुत सुन्दर रचना.
बेहतरीन

Science Bloggers Association said...

Bilkul ho jaaye.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Himanshu Pandey said...

सोचती हूँ, आज शाम
उसे एक मीठी-सी नज़्म परोस दूँ!!"

इस पंक्ति के पीछे की प्रवणता महसूस कर रहा हूँ । सहज मन की सहज अभिव्यक्ति ।

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