Sunday, May 9, 2010

माँ!

सूरज के जागने से पहले जागती


चिड़ियों के चहकने से पहले,



आँगन बुहारती



मुझे नींद से जगाने के लिए



दुलराती



अपने पद चिह्नों पर



चलने को प्रेरित करती



मर्यादा और संस्कार कि धरोहर समेटे



आदर और स्नेह कि सीख देती



मैंने,



उसे कर्तव्यों का निर्वहन करते भी देखा है--



अपने अधिकारों को भी पाना



उसका अधिकार नहीं था



तथाकथित बड़ों के तानों और उलाहनों का दर्द



आँखों तक आने से पहले ही



कहीं अन्दर समेट लेती



पूछने पर होठों पर



मौन की सांकल लगा लेती



जब वही बड़े लोग



मुझे लड़की होने के कारण



दुत्कारते



वह भूल जाती



माँ-मर्यादा, संस्कार



कर्त्तव्य और स्नेह!



मैंने उसे



मेरे अधिकारों के लिए



लड़ते भी देखा है



वह कोई और नहीं



मेरी माँ है!

21 comments:

कडुवासच said...

मैंने उसे
मेरे अधिकारों के लिए
लड़ते भी देखा है
वह कोई और नहीं
मेरी माँ है!
.... प्रभावशाली रचना,प्रसंशनीय!!!

एक बेहद साधारण पाठक said...

मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

दिलीप said...

maa mahan hai....
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

36solutions said...

मॉं को जीवंत करती भावपूर्ण रचना.


मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

आदेश कुमार पंकज said...

बहुत सुंदर
मातृ दिवस के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और मेरी ओर से देश की सभी माताओं को सादर प्रणाम |

रश्मि प्रभा... said...

maa kee rekhayen sukshmata se khinchi hain

honesty project democracy said...

विचारणीय प्रस्तुती /

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

अजय कुमार said...

समस्त माताओं को सादर नमन

vandana gupta said...

मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ………… कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।

inqlaab.com said...

bahut sundar bhav

मेरे अधिकारों के लिए
लड़ते भी देखा है

sach maa ase he hoti hai

विजय तिवारी " किसलय " said...

मातृ दिवसपर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और सभी माताओं को सादर नमन ।

वाणी गीत said...

उस माँ को प्रणाम ...!!

प्रदीप मानोरिया said...

bahut sundar rachnaa bhaavnaatmak

विमलेश त्रिपाठी said...

आपकी हर रचना दिल से निकली हुई लगती है। गहरी संवंदना से भरी कविताएं....कृपया मेरे बलॉग को देखकर अपनी राय दें..।।

R.Venukumar said...

सूरज के जागने से पहले जागती
चिड़ियों के चहकने से पहले,
आँगन बुहारती
मुझे नींद से जगाने के लिए
दुलराती
अपने पद चिह्नों पर
चलने को प्रेरित करती
मर्यादा और संस्कार कि धरोहर समेटे
आदर और स्नेह कि सीख देती

माँ-मर्यादा, संस्कार
कर्त्तव्य और स्नेह!

मां अनिर्वचनीय है

Unknown said...

kam likhaa hai maa isse bhi badhkar hai

mridula pradhan said...

bahot sunder kavita hai.

संजय भास्‍कर said...

माँ पर कुछ भी लिखो कम ही लगता है

mridula pradhan said...

bahut sunder likhtin hain aap.

अनिल पाण्डेय said...

दिल को छू लिया इन पंक्तियों ने.....आभार

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