Monday, June 7, 2010

इरोम शर्मीला

बेक़सूर लहू धरती का
आँचल रंग जाता है,
और औरतों की अस्मत
का खिलौना बन जाता है......

किससे करे फरियाद..?
ये प्रश्न सिर उठाता है,
जब रक्षक ही भक्षक की
तरह सामने आता है ......

तब-जब दर्द हद से,
गुज़र जाता है .....
आँखों से बहता नहीं
सूख जाता है .....

दिल में एक आक्रोश -सा
दहकता है,
फिर--
जिस्म पर कपडों के बिना,
औरत आवाज़ उठाती है ......

कानून की आँखों पर
तो पट्टी है,
प्रशासन को,
हकीक़त नज़र कब आती है ?

ऐसे में,
आक्रोश की बेबसी,
जब मायूसी से,
गले मिलती है,

तो "इरोम शर्मीला",
एक मशाल-सी जलती है....

जो जलती जा रही है॰,
निरंतर............
विगत आठ वर्षों से ,
अब तक........


इरोम शर्मिला चानू एक मणिपुरी कवियात्री हैं जिन्हें मणिपुर की लौह महिला (Iron Lady of Manipur) भी कहा जाता है जो कि एक क़ानून Armed Forces Special Powers Act (AFSPA), जो पूरे
उत्तर-पश्चिमी राज्यों (North Eastern States) में लागू है के विरोध में पिछले लगभग नौ वर्षों से भूख हड़ताल पर हैं वे नवंबर २००० में भारतीय सेना द्वारा १० मणिपुरी नागरिकों को मारे जाने को मानव अधिकार हनन का मामला मानते हुए भूख हड़ताल पर चली गयीं जिसके बाद उन्हें आत्महत्या के प्रयास में गिरफ्तार किया गया उन्हें हॉस्पिटल में एकांत में रखा गया है एवं कुछ तरल नाक के द्वारा उन्हें दिए जाते हैं जिससे की वे जीवित हैं

35 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर शब्दों....बहुत ही खूबसूरत रचना....

girish pankaj said...

अन्धकार में रोशनी का गान है अब शर्मिला
लड़ सके हिम्मत से वो इन्सान है अब शर्मिला
रोक पाओगे अगर तो देख लो तुम रोक कर
लड़ रही है वो कि बस तूफ़ान है अब शर्मिला
यह व्यवस्था चाहती है मौन हो जाएँ सभी
किन्तु मुखरित सत्य की पहचान है अब शर्मिला
जम्हूरित के जिस्म पर कोडा है मणिपुर की पुलिस
रोका दो उसको यही फरमान है अब शर्मिला
वो उठी है काश पूरा देश भी तो जागता
इंसानियत की सच कहें तो शान है अब शर्मिला
दुश्मनों को मारिये मासूम को क्यों मरना
तंत्र को इस लोक का ऐलान है अब शर्मिला
क्या ये मेरा देश मुर्दा हो गया इस दौर में?
ना-ना मेरे देश की तो आन है अब शर्मिला

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

इरोम शर्मिला अन्याय के विरुद्ध एक अनुकरणीय आवाज बन गयी हैं।
अगर आत्मबल का उपयोग किया जाए तो साधारण से साधारण मनुष्य भी अन्याय से लड़ सकता है।

अच्छी रचना आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तो "इरोम शर्मीला",
एक मशाल-सी जलती है....

जो जलती जा रही है॰,
निरंतर............
विगत आठ वर्षों से ,
अब तक.......

बहुत सुन्दर प्रस्तुति है...झकझोर देने वाली...

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना है !!

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर रचना...टेम्पलेट बदलने का प्रयास करें. पढ़ने में तकलीफ हो रही है...ग्रे बैकग्राऊन्ड पर काले फॉण्ट..

Randhir Singh Suman said...

तो "इरोम शर्मीला",
एक मशाल-सी जलती है....

जो जलती जा रही है॰,
निरंतर............
विगत आठ वर्षों से ,
अब तक........nice

संत शर्मा said...

Jagruk rachna, bahut achchi.

अपर्णा said...

सुन्दर रचना के लिए बधाई. विषय नविन है, और कविता शर्मीला जी के साथ न्याय करती है. बधाई , ज्योत्स्ना जी !

अरुणेश मिश्र said...

रचना प्रशंसनीय ।
शर्मीला स्वयं मशाल हैं ।
अच्छी कविता के संपादन के लिए ज्योत्सना जी को धन्यवाद ।
मानवाधिकार के कथित झण्डाबरदारोँ ने शर्मीला के मुद्दे पर क्या किया ?

Alpana Verma said...

शर्मिला जी के बारे में जाना.सच में लोह स्त्री ही हैं ..उनका ये प्रयास प्रशंसनीय है..उम्मीद है उनका उद्देश्य पूरा हो.
उनकी कविता में व्यवस्था के विरुद्ध ही तीखे तेवर नज़र आते हैं.
शुक्रिया आप का इस कविता को हम तक पहुँचाया.
[आप मेरे ब्लॉग पर आयीं ,आप से पहली बार परिचय हुआ.बहुत अच्छा लगा.आभार.]

Shabad shabad said...

Bahut hee achee rachna hai ....

रचना दीक्षित said...

उफ्फ... फ... फ..सच दिल भर आया बेहद प्रभावशाली रचना

उपेन्द्र नाथ said...
This comment has been removed by the author.
उपेन्द्र नाथ said...

इरोम शर्मिला अन्धकार में रोशनी है उन्हे समर्पित एक बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति.........

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मन को छू से गये आपके भाव....
--------
ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?

राजेश उत्‍साही said...

इरोम यहां ब्‍लाग पर इस तरह याद करने के लिए आपको बहुत बहुत सलाम।

एक बेहद साधारण पाठक said...

रचना बहुत अच्छी है ......
मुझे ये बात पहले पता नहीं थी , पढ़ते ही रोंगटे खड़े हो गए...
कमेन्ट में क्या लिखूं ये तो नहीं सूझा... ये कुछ पंक्तियाँ अभी बना कर प्रस्तुत कर रहा हूँ

जब कभी सही मायनों में
इतिहास के पन्नों में
बारी दिखाने की साहस ...
शौर्य ... बलिदान आयी है
बहनें आगे बढ़ी है हमेशा
रह गए पीछे भाई हैं

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर, बेहतरीन!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

अच्छी प्रस्तुति........बधाई.....

hem pandey said...

इरोम शर्मिला के बारे में उतना ही मालूम हुआ जितना आपने बताया. वैसे मानवाधिकारवादी प्रायः पूर्वाग्रही और एकपक्षीय होने का संकेत देते आये हैं. रचना अच्छी लगी.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है


http://charchamanch.blogspot.com/

रावेंद्रकुमार रवि said...

महत्त्वपूर्ण कवयित्री की अति महत्त्वपूर्ण कविता!
--
आपसे परिचय करवाने के लिए संगीता स्वरूप जी का आभार!
--
आँखों में उदासी क्यों है?
हम भी उड़ते
हँसी का टुकड़ा पाने को!

दिगम्बर नासवा said...

मार्मिक ... भगवान इरोम को शक्ति दे ... बहुत संवेदनशील लिखा है आपने ...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

सर्वप्रथम आपका परिचय ही बहुत प्रभावशाली है ।
मैं व्यथा हूँ हृदय की , प्रत्येक सहृदय की
करुणा भी मेरा नाम
कल्पित हृदय का दाह कचोटता क्यों मन को?
दे नही सकती शीतलता
तो हे देव! ज्योत्स्ना क्यों मेरा नाम?

…इसलिए कि जहां दृष्टि असमर्थ हो ,ज्योत्सना के साथ सक्षम हो जाए ।
इरोम शर्मिला चानू को आपकी वजह से कितने लोगों ने जाना , क्या यह कम बड़ी उपलब्धि है ?

साथ ही गिरीश पंकज जी को भी सशक्त आशु काव्य लेखन के लिए साधुवाद !

आमंत्रण है शस्वरं पर आने के लिए …

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

sanu shukla said...

bahut hi achhi rachna...

लता 'हया' said...

शुक्रिया .
आप व्यथा हैं ह्रदय की फिर भी तस्वीर में मुस्कुराहट की रौशनी बिखेर रही है इसलिए ज्योत्सना हैं .
इरोम जी के मुताल्लिक़ लिखने के लिए आप बधाई की हक़दार हैं .

मुकेश कुमार सिन्हा said...

uss jalti mashal ko mera salam!!

saath hi iss marmik kriti ke liye aapko badhai.......:)

Prem Farukhabadi said...

किससे करे फरियाद..?
ये प्रश्न सिर उठता है,
जब रक्षक ही भक्षक की
तरह सामने आता है ......

rachna bahut achchhi lagi. uthta ko uthaata karen please. badhhai!!

संजय भास्‍कर said...

अच्छी कविता के संपादन के लिए ज्योत्सना जी को धन्यवाद ।

संजय भास्‍कर said...

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

संजय भास्‍कर said...

आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

आप सभी सुधि जनों की आभारी हूँ, जिन्होंने कविता तक आकार मेरा उत्साह वर्धन किया, मुझे प्रोत्साहित किया....

"प्रेम फर्रुखाबादी" जी को विशेष धन्यवाद, जिन्होंने वर्तनी में हो रहे दोष की और ध्यानाकर्षित किया..

सादर!

अरुण अवध said...

और यह मशाल १२ वर्ष की होने को है ,
ज्योत्स्ना जी , इरोम को लेकर हम सब आंदोलित हैं ,
और कुछ करना चाहते हैं ! अशोक कुमार पाण्डेय जी ने
इसका शंखनाद कर दिया है !

Anonymous said...

एक मशाल जलती है...
बेहतर...

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