आओ फिर लौट ,
चलें उन हसीन यादों में.......
जब मैं-
गणित जैसा नीरस विषय
सिर्फ इसलिए पढती हूँ,
क्योंकि वह तुम पढ़ाते हो ...
तुम एक ही सवाल बार-बार समझाते हो,
और मैं,
न समझ पाने के बहाने के साथ,
तुम्हारे साथ कुछ वक्त और गुजारती हूँ,
वैसे ही कुछ और वक्त गुजारो न!
आओ फिर लौट चलें,
उन हसीन यादों में.....
जब तुम-
मुझसे मिलने के लिए,
रात को ही चल देते हो..
बिना ये सोचे कि इस वक्त कैसे पंहुचोगे..
फिर भी साधन जुटाते हो,
आठ किलोमीटर पैदल भी चलकर आते हो.
रात के तीन बजे तुम्हारा यूँ पंहुचना,
मुझे हतप्रभ कर देता है....
वैसे ही आज भी चौंकाओ न!
आओ फिर लौट चलें,
उन हसीन यादों में......
जब हम--
साथ-साथ होते
तुम्हारी उंगलियां मेरे बालों में कंघी करतीं,
और तुम्हारी आँखे मेरा चेहरा पढ़तीं,
तब मेरी उलाहनों भरी बक-बक
तुम चुपचाप सुनते,
मेरी पेशानी पर खिंची लकीरों को चूम लेते,
मैं अपना सारा दर्द भूल जाती....
वैसे ही मेरे दर्द भुलाओ न!
आओ फिर लौट चलें,
उन हसीन यादों में....
16 comments:
अनुभव के आनन्द का स्मरण ।
प्रशंसनीय ।
BAHOT HI ACHI KAVITA HAI KYA AAP IS KAVY KI SHRIJANKAR HAI ?
bahut sundar racna...!!
kuchh haseen yaaden hame bhi yaad aa gayeen........:D
lekin sayad prasang ulta tha..:0
anyway bahut khubsurat yaad!!
kuchh haseen yaaden hame bhi yaad aa gayeen........:D
lekin sayad prasang ulta tha..:0
anyway bahut khubsurat yaad!!
कई हसीं यादों में खींच ले गयी आपकी कृति
बेहद प्रभावी लिखा है
कुछ हसीन यादें और गणित पढने की मजबूरी ...
अच्छी रचना .
chalo laut chalen un haseen lamhon ko phir se jee len ...
ज्योत्सना जी पता नहीं यह आपका अपना अनुभव है या कल्पना पर कविता मुझे बहुत पसंद आयी. वैसे भी सच्ची कविता आह से ही पैदा होती है. बहुत सुन्दर
"जब हम--
साथ-साथ होते
तुम्हारी उंगलियां मेरे बालों में कंघी करतीं,
और तुम्हारी आँखे मेरा चेहरा पढ़तीं,
तब मेरी उलाहनों भरी बक-बक
तुम चुपचाप सुनते,
मेरी पेशानी पर खिंची लकीरों को चूम लेते,
मैं अपना सारा दर्द भूल जाती....
वैसे ही मेरे दर्द भुलाओ न!"
इन शब्दों के पीछे बहुत कसक छुपी है ....सच कहा है किसी ने की जो बीत गया वो वापिस नहीं आता......पर कसक तो रह ही जाती है .....खुबसूरत रचना.......
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आईएगा -
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हम भी जा रहे हैं लौटक।
ise hi kshish khte hai. tni hui door jis pr kuchh hum chle kuchh tum chlo .wah! kya khoobsurat nzm hai .
यादें ऐसी ही होती हैं ................कभी नही भूलती.............
यादें भी कितना हसीन होती हैं .... गुज़रे वक़्त में खींच कर ले गयी ...
बहुत ही सुन्दर कविता ..हसीन यादों में खोना भी हसीन अनुभव है.
bahut hi acchi rachna... tareef ke liye shabd nahi hain.. maza a gaya..
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