Friday, September 3, 2010

आओ फिर लौट चलें...

आओ फिर लौट ,
चलें उन हसीन यादों में.......

जब मैं-
गणित जैसा नीरस विषय
सिर्फ इसलिए पढती हूँ,
क्योंकि वह तुम पढ़ाते हो ...
तुम एक ही सवाल बार-बार समझाते हो,
और मैं,
न समझ पाने के बहाने के साथ,
तुम्हारे साथ कुछ वक्त और गुजारती हूँ,
वैसे ही कुछ और वक्त गुजारो न!

आओ फिर लौट चलें,
उन हसीन यादों में.....

जब तुम-
मुझसे मिलने के लिए,
रात को ही चल देते हो..
बिना ये सोचे कि इस वक्त कैसे पंहुचोगे..
फिर भी साधन जुटाते हो,
आठ किलोमीटर पैदल भी चलकर आते हो.
रात के तीन बजे तुम्हारा यूँ पंहुचना,
मुझे हतप्रभ कर देता है....
वैसे ही आज भी चौंकाओ न!

आओ फिर लौट चलें,
उन हसीन यादों में......

जब हम--
साथ-साथ होते
तुम्हारी उंगलियां मेरे बालों में कंघी करतीं,
और तुम्हारी आँखे मेरा चेहरा पढ़तीं,
तब मेरी उलाहनों भरी बक-बक
तुम चुपचाप सुनते,
मेरी पेशानी पर खिंची लकीरों को चूम लेते,
मैं अपना सारा दर्द भूल जाती....
वैसे ही मेरे दर्द भुलाओ न!

आओ फिर लौट चलें,
उन हसीन यादों में....

16 comments:

अरुणेश मिश्र said...

अनुभव के आनन्द का स्मरण ।
प्रशंसनीय ।

Yuvraj said...

BAHOT HI ACHI KAVITA HAI KYA AAP IS KAVY KI SHRIJANKAR HAI ?

sanu shukla said...

bahut sundar racna...!!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

kuchh haseen yaaden hame bhi yaad aa gayeen........:D

lekin sayad prasang ulta tha..:0

anyway bahut khubsurat yaad!!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

kuchh haseen yaaden hame bhi yaad aa gayeen........:D

lekin sayad prasang ulta tha..:0

anyway bahut khubsurat yaad!!

mai... ratnakar said...

कई हसीं यादों में खींच ले गयी आपकी कृति
बेहद प्रभावी लिखा है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कुछ हसीन यादें और गणित पढने की मजबूरी ...

अच्छी रचना .

रश्मि प्रभा... said...

chalo laut chalen un haseen lamhon ko phir se jee len ...

जय शंकर said...

ज्योत्सना जी पता नहीं यह आपका अपना अनुभव है या कल्पना पर कविता मुझे बहुत पसंद आयी. वैसे भी सच्ची कविता आह से ही पैदा होती है. बहुत सुन्दर

Anonymous said...

"जब हम--
साथ-साथ होते
तुम्हारी उंगलियां मेरे बालों में कंघी करतीं,
और तुम्हारी आँखे मेरा चेहरा पढ़तीं,
तब मेरी उलाहनों भरी बक-बक
तुम चुपचाप सुनते,
मेरी पेशानी पर खिंची लकीरों को चूम लेते,
मैं अपना सारा दर्द भूल जाती....
वैसे ही मेरे दर्द भुलाओ न!"

इन शब्दों के पीछे बहुत कसक छुपी है ....सच कहा है किसी ने की जो बीत गया वो वापिस नहीं आता......पर कसक तो रह ही जाती है .....खुबसूरत रचना.......

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राजेश उत्‍साही said...

हम भी जा रहे हैं लौटक।

RAJWANT RAJ said...

ise hi kshish khte hai. tni hui door jis pr kuchh hum chle kuchh tum chlo .wah! kya khoobsurat nzm hai .

सु-मन (Suman Kapoor) said...

यादें ऐसी ही होती हैं ................कभी नही भूलती.............

दिगम्बर नासवा said...

यादें भी कितना हसीन होती हैं .... गुज़रे वक़्त में खींच कर ले गयी ...

Alpana Verma said...

बहुत ही सुन्दर कविता ..हसीन यादों में खोना भी हसीन अनुभव है.

Aseem Trivedi said...

bahut hi acchi rachna... tareef ke liye shabd nahi hain.. maza a gaya..

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